युद्ध का दुस्साहस नहीं करेगा चीन

लद्दाख में भारत-चीन की सेनाओं के बीच छिटपुट झड़प की खबरों के बीच, मीडिया के एक धड़े का मानना है कि शायद दोनों देश एक युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन, मेरा यह स्पष्ट तौर पर मानना है कि चीन अभी ऐसा कोई दुस्साहस करने की स्थिति में नहीं है, और इसके पीछे कई कारण हैं।

सबसे पहला कारण यह है कि भारत चीन सीमा पर, सन 1962 के बाद कभी गोली नहीं चली, तीन साल पहले डोकलाम विवाद के समय, लंबे समय तक दोनों देशों के सैनिक भिड़े रहे, लेकिन फिर भी, ना एक भी गोली चली, ना किसी की जान गई। इस से यह पता चलता है कि चीन भारत की क्षमता को कम कर के नहीं आंक रहा है, और वो युद्ध जैसी किसी भी स्थिति को, आखिरी वक्त तक टालना चाहेगा।

दरअसल, हाल के समय में, चीन भारत के बढ़ते कद से खासा परेशान है, और कोरोना काल में दवा बांटने के बहाने जो कूटनीति हुई, उस से वह खासा चिढ़ गया है। अमेरिका जैसे बड़े देश के राष्ट्रपति ने भारत से मलेरिया की दवा के लिए आग्रह किया, तो ब्राजील के राष्ट्रपति ने इसे संजीवनी बूटी करार देते हुये, रामायण व हनुमान जी तक का रेफरेंस दे दिया। इसके बाद, जिस प्रकार भारत ने चीन में बनी टेस्ट किट व पीपीई किट की गुणवत्ता को घटिया बताते हुए, उसे वापस भेजा, तथा देश में उसका निर्माण शुरू किया, वह चीन के लिए एक झटके से कम नहीं था। कोरोना संकट के इस काल में, उन अधिकतर देशों ने, जहाँ भारतीय दवा पहुंची, चीनी मेडिकल सप्लाई खरीदना या तो बंद कर दिया, या फिर कम कर दिया। लॉकडाउन की वजह से दुनिया भर के बाजार बंद हैं, और खाने-पीने के अलावा बाकी चीजों की बिक्री नगण्य है, तो इस हालत में, मेडिकल सप्लाइज की बिक्री में कमी, चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं है।

चीन के परेशानी की एक बड़ी वजह, भारत का वह बयान है, जिसमें भारत ने दो-टूक शब्दों में गिलगिट-बाल्टिस्तान समेत पूरे पाक-अधिकृत कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताया है, और पाकिस्तान को इसे खाली करने को कहा है। इस क्षेत्र में, अपनी महत्वाकांक्षी “वन बेल्ट, वन रोड” परियोजना के तहत चीन हजारों करोड़ रुपयों का निवेश कर चुका है, और अगर भारत उस क्षेत्र पर कब्जा करता है, तो उसका सारा पैसा डूब जायेगा। इसी बौखलाहट में, चीन सीमा पर तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहा है।

छह साल पहले, जब राजग सरकार के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण किया, तो उन्हें चीन की ओर से संभावित खतरे की अंदेशा था, और इसके लिए तैयारियां भी की गईं। भारतीय सेना की इकाई बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन ने युद्ध-स्तर पर पूर्वोत्तर सीमा व लद्दाख के आसपास निर्माण कार्य किये, जिसके फलस्वरूप अभी तक साढ़े तीन हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जा चुका है, जो भारतीय सेना को मिनटों में सीमा तक पहुंचा सकती है। इसके अलावा सैकड़ों पुलों व कई सुरंगों का निर्माण किया गया, जिसमें कुछ बड़े पुल भी हैं, और कई ऐसे दुर्गम स्थानों पर बने हैं, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। वायुसेना की पहुंच सुगम बनाने के लिए भारत ने, ना सिर्फ सीमांत क्षेत्र के सभी वायु सेना के बेसों का आधुनिकीकरण किया है, बल्कि आसपास के सभी सिविल एयरपोर्टों को भी अपग्रेड कर के, उस लायक बनाया है कि जरूरत पड़ने पर, वायुसेना द्वारा उनका इस्तेमाल हो सके।

एक ऐसे वक्त में, जब पूरा विश्व एक ग्लोबल विलेज बन चुका हो, हमारी बड़ी आबादी को एक डिप्लोमैटिक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए, भारत ने जापान व वियतनाम समेत हर उस देश से दोस्ती बढ़ाई, जिनको चीन के साथ कुछ ना कुछ दिक्कत है। दरअसल, दक्षिणी चीन सागर में, चीन की महत्वाकांक्षा ने कई दुश्मन बना रखे हैं, और उन सबकी भारत से बढ़िया दोस्ती है, तो किसी भी लड़ाई की सूरत में, शायद उसे कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना पड़े। हाल में, यह भी खबर मिली कि भारत वियतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देशों को ब्रह्मोस व आकाश जैसी मिसाइलें बेच सकता है, जो चीन के लिये खासी परेशानी की बात है।

कोरोना वायरस की वजह से दुनिया भर में लाखों लोग मर चुके हैं, पूरी इकॉनमी अस्त-व्यस्त हो चुकी है, और अधिकतर देश इसका जिम्मेदार चीन को मानते हैं। सिर्फ अमेरिका में 18 लाख लोग संक्रमित हैं, तथा मरने वालों का आंकड़ा एक लाख के पार जा चुका है, तो यह मानना गलत होगा कि 9/11 अटैक में मात्र तीन हजार लोगों की मौत के जिम्मेदार आंतकियों की तलाश में, अफगानिस्तान को उजाड़ देने वाला अमेरिका, लाखों मौतों पर चुप बैठेगा।

चुनावी साल में, लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था व बेरोजगारी का संकट झेल रहा अमेरिका वास्तव में एक बहाने की तलाश में है, और इस समय, चीन अगर युद्ध जैसी कोई गलती करता है, तो शायद यह तिसरे विश्व युद्ध का आगाज होगा, जिसमें एक ओर चीन, नार्थ कोरिया और ईरान होंगे, जबकि दूसरी तरफ भारत के साथ पूरी दुनिया। इस बात को बीजिंग में बैठे रणनीतिकार भी बखूबी समझते होंगे, इसलिए, फिलहाल युद्ध की धमकी सिर्फ दबाव बनाने की कोशिश भर है, और इस से ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

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