इन पुत्रण के शीश पर वार दिए सुत चार, चार मुए तो क्या हुआ जीवत कई हजार
-गुरुओं व सिखों के लाशानी इतिहास सुन भावुक हुई संगत, बाबा जीवन सिंह को भी किया याद
Jamshedpur,24 Dec: भाई भूपेंद्र सिंह पारसमणी अमृतसर वाले ढाडी जत्था ने साहिब-ए-कमाल के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह के साथ माता गुजर कौर और सिख शहीद बाबा जीवन सिंह, भाई जैता जी के लाशानी ऐतिहासिक सफर की दास्तां से संगत को भावुक कर दिया. मौका था साकची स्थित सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के बैनर तले आयोजित सफर-ए-शहादत शहीदी समागम का. जत्थे ने ढाडी वारां के साथ शहीदी के लाशानी इतिहास को बड़े ही सुंदर ढंग से संगत के समक्ष प्रस्तुत किया. उन्होंने बताया कि गंगू ब्राह्मण ने मोहरों की लालच में सरसा नदी से बिछड़े श्री गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे पुत्रों व माता गुजर कौर को वजीर खान सूबेदार के हवाले कर दिया. उसके अपने भाई पम्मा ने वजीर खान को चुगली लगाई कि कैद में माता व छोटे लालों को बाबा मोती राम गर्म दूध देते हैं. तब वजीर खान ने मोती राम को परिवार समेत गन्ना रस निकालने वाले कोलू (मशीन) में डालकर शहीद करवा दिया. जत्थे ने साहिबजादों व सिख शहीदों को अपना रोल मॉडल बनाने के लिए संगत को प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि जिस कौम के बच्चों ने अपना लहू गिरा कर महल उसारे (बनाए) हो. तभी वह रहती दुनिया तक कायम रहते हैं. सिख किसी भी हालत में हो अपने धर्म के प्रति परिपक रहता है. कभी भी डोलता नहीं है. छोटे साहिबजादों ने छोटी उम्र में मुसलमान धर्म न ग्रहण करके मौत की सजा कबूल की. सरहंद में जिंदा दीवारों के बीच दफन किया गया. जब उन दीवार छाती तक आई तो वह गिर गई. फिर जलादों ने चाकू से जबा कर शहीद कर दिया. उन्होंने श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज वाणी कबीर जिस मरने ते जग डरे मेरे मन आनंद. मरने ही ते पाइये पूरण परमानंद…अर्थात जिस मौत से दुनिया डरती है. हमें वह मौत आनंदित करती है. मरने के बाद भी हम पूरण अटल पदवी प्राप्त कर लेते हैं. इन पुत्रण के शीश पर वार दिए सुत चार. चार मुए तो क्या हुआ जीवत कई हजार…के साथ संगत को गुरु घर से जुडऩे के लिए प्रेरित किया.
शाम को भी उमड़ी संगत, घर छोडऩे के लिए बसों की सेवा
कड़ाके की ठंड में दूसरे दिन के चौथे व अंतिम दीवान में भी संगत अपने गुरु की आशीष लेने श्रद्धा के साथ उमड़ी. शाम के दीवान में भी जत्थे ने श्री गुरु गोबिंद सिंह के जाने के बाद के आनंदपुर साहिब का जिक्र कथा व ढाडी वारां के जरिए संगत के समक्ष रखा. स्थानीय जत्थे धर्मवीर सिंह अमृतसर वाले, रामप्रीत सिंह, कथावाचक गुरप्रताप सिंह आदि ने भी संगत को गुरवाणी के उपदेश से निहाल किया. दोनों वेला संगत के बीच गुरु का अटूट लंगर वितरित किया गया. शाम के दीवान की समाप्ति उपरांत सरबत के भले की अरदास की गई. संगत को घरों व संबंधित गुरुद्वारा तक छोडऩे के लिए सीजीपीसी द्वारा बसों की सेवा भी की गई थी. सभी गुरुद्वारों के प्रतिनिधि संगत में शामिल हुए.
इनका रहा सहयोग: दो दिवसीय समागम को सफल बनाने में प्रधान गुरमुख सिंह मुखे, दलजीत सिंह दल्ली, जसबीर सिंह पदरी, अजीत सिंह गंभीर, मंजीत सिंह संधू, हरदयाल सिंह, सतनाम सिंह गंभीर, तरसेम सिंह, जागीर सिंह, महेंद्र सिंह, सुखविंदर सिंह, अमरजीत सिंह, सरदूल सिंह, नौजवान सभा के प्रधान सतबीर सिंह गोल्डू, जितेंद्र सिंह, जगजीत सिंह जग्गी, दीपक सिंह गिल, स्त्री सत्संग सभा की प्रधान बीबी सुखजीत कौर, रविंद्र कौर सभी धार्मिक संस्थाओं ने सहयोग किया.