जमशेदपुर 6 सितंबर मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल (एमटीएमएच) द्वारा स्वर्ण जयंती अवसर पर आज से दो दिनों का वृहद प्रिसिजन ऑगोलोजी पर संगोष्ठी का आयोजन शुरु हुआ। इसमें देश के नामी गिरामी कैंसर इलाज में लगे चिकित्सक भाग ले रहे हैं। प्रिसिजन ऑंकोलोजी कैंसर के इलाज का एक सटीक व्यक्तिगत तरीका है जो रोगी के शरीर की अनुवांशिक संरचना और ट्यूमर की आणविक विशेषताओं के आधार पर उपचार की दिशा तय करता है। इस प्रक्रिया में ट्यूमर के डीएनए या उसके विशिष्ट जेनेटिक म्यूटेशनों की पहचान करके टारगेटेड उपचार विकसित किये जाते हैं जिससे केवल कैंसर कोशिकाओं पर हमला होता है और स्वस्थ कोशिकाओं को कम से कम नुकसान पहुंचता है।
इस धारणा को दूर करना होगा कि जांच में अगर कैंसर मिला तो हम मर जाएंगे-पद्मश्री डा जीतेंद्र सिंह
गोष्ठी में पटना आये पद्मश्री डा जीतेंद्र सिंह ने बताया कि कैंसर लाइलाज बीमारी नहीे है बशर्ते प्रारंभिक अवस्था में इसकी पहचान हो सके। इस धारणा को दूर करना होगा कि जांच में अगर कैंसर मिला तो हम मर जाएंगे। जांच नहीं कराने से कोई बच भी कैसे सकता है।सामान्य तौर पर हमारे देश में कैंसर जब भयावह रुप ले लेता है और अंतिम अवस्था या जिसे फोर्थ स्टेज कहते हैं, आ जाती है तब रोगी अस्पताल पहुंचते हैं। डा सिंह ने कहा कि भारत में आज यह महामारी का रुप ले रहा है। दुनियां के विससित देशों में कैंसर पर काबू पा लिया गया है जबकि भारत और अन्य विकासशील देशों में यह भयावह ढंग से बढ रहा है। मुंह का कैंसर भारत में सर्वाधिक पाया जा रहा है जो दुनियां में चौथे नंबर पर आ गया है।हिन्दुस्तान में हर साल 15 लाख नये रोगी आ रहे हैं और हर समय 45 लाख कैंसर मरीज इलाजरत पाये जाते हैँ। यह आंकड़ा अस्पतालों में आये मरीजों के आधार पर है जबकि जनसंख्या के आधार पर यदि गणना की जाए तो यह और अधिक होगा। सभी मरीज इलाज के लिये अस्पताल तक पहुंच भी नहीं पाते। उन्होंने सुझाव दिया कि इसे नोटिफाइड डिजिज का दर्जा दिया जाए और सरकार इसे रोकने के लिये स्कैनिंग प्रोग्राम शुरु करे जिससे प्रारंभिक अवस्था में ही इसकी पहचान संभव हो जाए। कैंसर के सात आठ ही कार्डिनल लक्षण हैं जिन्हें प्रारंभिक अवस्था में आसानी से पता लगाया जा सकता है।उन्होंने कैंसर के इन शुरुआती लक्षणों के बारे में भी जानकारी दी। भारत में महिलाओं में आज ब्रेस्ट कैंसर सर्वाधिक सामने आ रहा है। गर्भाषय और सर्वाइकल कैंसर पहले से था। पुरुषों में भी ब्रेस्ट कैंसर हो रहा है। कैंसर के इलाज में अब पहले वाली स्थिति नहीं रही आज तकनीक और अत्याधुनिक चिकित्सा विज्ञान के जरिये इसके लिये वैक्सिन का भी विकास कर लिया गया है जो 11 से 20 वर्ष की बच्ची को अगर दे दिया जाए तो उसे गर्भाषय कैंसर का खतरा नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि लोगों में कैंसर के प्रति जागरुकता लाना बहुत जरुरी है जिसमें मीडिया की अहम भूमिका हो सकती है।
पर्यावरण , खान पान में बदलाव कैंसर बढने का प्रमुख कारण -डा आशु अभिषेक
अपोलो प्रोटोन सेंटर चेन्नई से आये डा आशु अभिषेक ने कहा कि प्रोटोन रेडियेशन के जरिये आज हम इलाज ही नहीं कैंसर मरीजों के सर्र्वाईवल की बात कर रहे हैं। प्रेसिशन ओंकोलोजी एक ऐसा अनुसंधान है जिसे हम कैंसर कोशिकाओं को टारगेट करते हैं और उसे बढने से वहीं रोक सकते हैँ।अन्य कोशिकाओं को इसके नुकसान से बचाया जा सकता है। पर्यावरण , खान पान में बदलाव को उन्होंने कैंसर बढने का प्रमुख कारण बताया। कैंसर को जड़ से हटाना संभव है लेकिन इसके लिये चौतरफा प्रयास और जीवनशैली के प्रति सतर्कता जरुरी है। हम इसे महामारी से बचाकर एक क्रोनिक डिजिज के रुप में नियंत्रित कर सकते हैं। लोगोंको जागरुक होना होगा कि उन्हें कैंसर हो गया तो उनकी मौत अवश्यंभावी नहीं है। उससे लडऩे के लिये सबको तैयार रहना होगा।
महिलाओं को अंग में हल्की गाँठ महसूस हो तो उन्हें सतर्क हो जाना चाहिये-डा पूनम पंचवानी
मुंबई कैंसर अस्पताल टीएमसी से पैथोलॉजी विभाग की डा पूनम पंचवानी ने कहा कि महिलाओं में मोटापा उनकी जीवन शैली , कम उम्र में शिशु जन्म , विलंब से गर्भाधान अथवा गर्भाधान नहीं होना भी महिलाओं में कैंसर के कारण होते हैं। जब भी महिलाओं को अंग में हल्की गाँठ महसूस हो तो उन्हें सतर्क हो जाना चाहिये। साधारण क्लिनिकल जांच से ब्रेस्ट कैंसर का पता चल सकता है। महिलाओं में यह जेनेटिक भी होता है। पैथोलॉजी से हम ई आर, पी आर,हरटू आदि तकनीकी बिन्दुओं का पता कर इलाज की विधि तय करते हैं। कैंसर के इलाज का तरीका हर मरीज के लिये अलग अलग हो सकता है।
कैंसर के इलाज के लिये मरीज को हमेशा किसी मल्टी स्पेसिलिटी अस्पताल में ही जाना चाहिये -डा अर्णव गुप्ता
ठाकुरपुकुर , एसजीसीसीआरआई कोलकाता के सर्जिकल ऑंकोलोजिस्ट डा अर्णव गुप्ता ने कहा कि भारत में इस बीमारी पर काफी अनुसंधान चल रहा है। जबकि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने सर्च पर अनुदान ही बंद कर दिया। अमेरिका गये अब भारतीय वैज्ञानिक भारत लौटेंगे और अब यहां रिसर्च को और बढावा मिलेगा।उन्होंने कहा कि कैंसर के इलाज के लिये मरीज को हमेशा किसी मल्टी स्पेसिलिटी अस्पताल में ही जाना चाहिये जहां सभी पहलुओं पर विचार करने वाली चिकित्सीय सुविधाएं और विशेषज्ञ डाक्टर मौजूद हों। कैंसर को सिर्फ सर्जरी अथवा केमोथेरापी, रेडियोथेरापी अथवा टारगेट थेरापी से नहीं रोका जा सकता। सभी विधियों का इसमें सामूहिक योगदान होता है। मल्टी स्पेसिलिटी अस्पतालों में ट्यूमर बोर्ड होता है जो मरीज की स्थिति पर सभी तरह से विचार कर इलाज का तरीका निर्धारित करता है। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का 90 प्रतिशत इलाज संभव है।
टाटा मेडिकल सेंटर कोलकाता के डा सोमनाथ राय ने कहा कि रेसिसन ऑंकोलोजी टारगेट सेट करने में मदद करता है। कैंसर में अंतिम अवस्था में पहुंचे मरीजों को थोड़ी आयु और उनको हो रहे कष्टों से बचाव का उपाय किया जा सकता है लेकिन उन्हें बचाने का दावा नहीं किया जा सकता।
विवांता ताज में यह संगोष्ठी कल भी चलेगी।
मुख्य बातें
कैंसर के शुरुआती लक्षण
शरीर में किसी अंग में ट्यूमर
शरीर के किसी भाग में असमान उभार, कोई गिल्टी,मुंह में छाला,
उल्टी, खांसी और पखाने में बार बार खून आना
संतुलित आहार के बाद भी शरीर में कमजोरी का बढना
(ब्लड कैंसर)
रात में सोने जाने पर बार बार पेशाब आना(प्रोस्टेड कैंसर)
महिलाओं में छाती में गांठ
प्रारंभिक पहचान के लिये हर कैंसर अस्पलात में बहुत साधारण जांच से इसे पता लगाया जा सकता है
हर व्यक्ति को साल में एक बार अपनी जांच करा लेनी चाहिये
कैंसर के इलाज के लिये अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश अनेक अस्पताल स्थापित हो रहे हैं।बिहार झारखंड में ही पटना , हाजीपुर, रांची, और जमशेदपुर में एमटीएमएच में प्रारंभिक जांच और इलाज की सारी सुविधाएं मौजूद हैं। कैंसर से घबराने के बजाय पूरे परिवार को इससे एकजुट होकर लडऩे का हौसला रखना चाहिये।
रांची रेडियम रोड का इतिहास
एशिया में पहली बार कैंसर का इलाज रेडियम से शुरु हुआ जो 1907 में रांची पहुंचा लेकिन उस समय साधन सुविधाओं के अभाव में इसे बिहार ले जाना पड़ा। 1911 में बिहार में एशिया का रेडियम से पहला इलाज हुआ।रांची से एक खास मार्ग से इसे बिहार ले जाया गया। उस सडक़ को आज भी रेडियम रोड कहा जाता है