ते नरवर थोड़े जग माही के विग्रह:बिहार केशरी डा श्रीकृष्ण सिंह

(21.10.1887-31.1.1961)

सात समुंद की मसि करूं, लेखन सब बनराई।
धरती सब कागद करुं, श्रीकृष्ण गुण लिखा न जाई।।
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जय हो जग में जले जहां भी, नमन पुनीत अनल को।
जिस नर में भी बसे हमारा,
नमन तेज को, बल को।।
किसी वृन्त पर खिले विपिन में,
पर नमस्य है फूल।
सुधी खोजते नहीं गुणों का,
आदि शक्ति का मूल।।
रश्मिरथी (प्रथम सर्ग) – दिनकर

उपर्युक्त नमस्कारात्मक काव्य पंक्तियां राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने महाभारत के अप्रतिम दया वीर, युद्धवीर और दानवीर महारथी कर्ण को ध्यान में रखकर लिखी हैं लेकिन इन सारगर्भित पंक्तियों की व्यंजना कर्ण तक ही सीमित नहीं है, अपितु इनकी व्यंजना बहुत विस्तृत व्यापक एवं सूक्ष्म है। जंगल के किसी भी वृंत पर खिलने वाला फूल आदर एवं सम्मान का अधिकारी है ।वे सभी लोग नमनीय एवं वंदनीय हैं जो तेजप्रताप एवं गुणों की खान हैं। सुधी जन गुणों के आदि एवं अंत के लिए व्यग्र नहीं होते अपितु गुनी जनों का समादर करते हैं।
किसी सरस्वती पुत्र के सुदीर्घ सारस्वत साधना का आकलन एवं मूल्यांकन करना आसान कार्य नहीं है, विशेषत: उस सरस्वती पुत्र की साधना का आकलन एवं मूल्यांकन तो और भी कठिनतम कार्य है, जिसका व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी हो जिसके चिंतन का आकाश बहुत व्यापक एवं विस्तृत हो और जिसकी समझ की गहराई सागर वक्त हो और जो एक साथ कई भाषाओं और विधाओं में निष्णात हो, ऐसे वाणी साधक का बहिरंग जितना व्यापक होता है अंतरंग उससे कहीं अधिक गहरा। बिहार केशरी डा.श्री कृष्ण सिंह ऐसे ही सरस्वती के वरद् पुत्र थे।
किसी को समय बड़ा बनाता है और कोई समय को बड़ा बना देता है। कुछ लोग समय का सही मूल्यांकन करते हैं और कुछ आने वाले समय का पूर्वाभास पा जाते हैं,तो कुछ लोग परत दर परत तोड़कर उसमें वर्तमान के लिए ऊर्जा एकत्र करते हैं और कुछ लोग वर्तमान की समस्याओं से घबराकर अतीत की ओर भाग जाते हैं। अमर स्वतंत्रता सेनानी श्री बाबू कभी समस्याओं से विमुख नहीं हुए और जब तक आजादी नहीं मिली चैन की नींद नहीं सोए।
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।।
राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा के माध्यम से उपर्युक्त पंक्तियों में जिन भावों की अभिव्यक्ति की है ,उसके जीवंत प्रतीक थे बिहार केशरी अमर स्वतंत्रता सेनानी श्री बाबू; जो भले ही स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद नहीं हुए हों लेकिन उन्हें शहादत के लिए साहस और दिल में सच्चा मान जरूर था। श्री बाबू का जन्म बिहार प्रांत के मुंगेर जिलान्तर्गत बरबीघा प्रखंड के माउर नामक ग्राम में 21अक्टूबर 1887 को एक संभ्रांत और किसान परिवार में हुआ था तथा स्वर्गारोहण 31जनवरी 1961 को। इनके पिता का नाम श्री हरिहर सिंह था जो शिव के परम भक्त थे तथा माता भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।इनकी प्रारंभिक शिक्षा पिता के संरक्षण में घर पर ही प्रारंभ हुई।बड़े होने पर मुंगेर जाकर वे अपने बड़े भाई के संरक्षण में अध्ययन करने लगे।कुछ दिनों बाद उनका नाम मुंगेर जिला स्कूल में लिखाया गया,जहाँ से उन्होंने 1906 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और छात्र वृति भी प्राप्त की। स्नातक की परीक्षा पटना कालेज से पास की तथा 1913 में उन्होंने कोलकता विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में एम.ए.उपाधि प्राप्त की और फिर वहीं से 1915 में बी.एल.कानून की।इसी वर्ष इनकी नियुक्ति बी.एन.कालेज पटना में इतिहास के व्याख्याता के पद पर हुई,परंतु बड़े भाई के इच्छानुसार इन्होंने इस पद को अस्वीकार कर दिया और मुंगेर में वकालत करने लगे।श्रीबाबू में प्रतिभा और तार्किकता अद्भुत थी।फलतः कुछ ही दिनों में इनकी वकालत चमक उठी।वकालत के साथ साथ वे कानून में पीएच.डी. की भी तैयारी कर रहे थे,परंतु देश की पुकार पर इन्होंने अपनी चलती और चमकती हुई वकालत छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।अमर स्वतंत्रता सेनानी श्री बाबू आजादी की लड़ाई में न जाने कितनी बार जेल गए, परंतु जब तक भारत आजाद नहीं हुआ, वे चैन की नींद नहीं सो सके।
श्रीबाबू का व्यक्तित्व और कृतित्व बहुआयामी था।उनके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं,जिनकी संक्षिप्त चर्चा यहाँ प्रस्तुत है:-
1 दृढ संकल्पी व्यक्तित्व के धनी:-
श्रीबाबू छात्र जीवन से ही मेधावी और कुशल वक्ता थे।राजेन्द्र बाबू द्वारा स्थापित बिहारी छात्र सम्मेलन के प्रमुख सदस्य थे।जब वे उच्च विद्यालय के छात्र थे, तभी बंगाल का विभाजन हुआ।फलस्वरूप देश भर में उग्र प्रदर्शन और क्रांतिकारी आंदोलन तेज हो गए।बंगाल में जगह जगह पर गुप्त क्रांतिकारी समितियों का गठन हुआ जिनका उद्देश्य अस्त्र-शस्त्र द्वारा अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकना था।एक बंगाली शिक्षक से किशोर श्रीकृष्ण ने क्रांति की दीक्षा ली और एक हाथ में गीता और दूसरे हाथ में कृपाण लेकर मुंगेर के कष्ट हरणी घाट पर गंगा में प्रवेश कर शपथ ली:-“भले ही प्राण चले जाएं किंतु देश सेवा के मार्ग से विचलित नहीं होउंगा।”श्री बाबू जीवन पर्यंत अपनी इस प्रतिज्ञा पर डटे रहे।
2 गांधी जी के सच्चे अनुयायी:-
बाल गंगाधर तिलक ने जब होमरूल लीग की स्थापना की,तो श्रीबाबू ने उसकी सदस्यता स्वीकार कर ली और बिहार में इस आंदोलन के नेता बन गए।यद्यपि बिहार केशरी श्रीबाबू के व्यक्तित्व पर लोकमान्य तिलक की अमिट छाप थी,फिर भी जब उन्होंने 1916 में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का भाषण सेन्ट्रल हिंदू कालेज वाराणसी में सुना,तो उनके व्याख्यान से वे काफी प्रभावित हुए।जिस समय महात्मा गांधी चंपारण आए,तो श्रीबाबू ने होमरूल आंदोलन छोड़कर महात्मा गांधी के साथ काम करना शुरू कर दिया।
3 क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी:-
दिनों दिन अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था।13अप्रैल 1919 को बैशाखी के दिन जनरल डायर ने अमृतसर के जालियाँ वाले बाग में हो रही शांति सभा में निहत्थे लोगों पर अपने 150 भारतीय तथा 50 गोरे सैनिकों को अंधाधुंध गोलियां चलाने का हुक्म दिया, जिसमें 500 से अधिक लोग मारे गए और 1500 से अधिक लोग घायल हुए।इस नृशंस हत्याकांड ने देशवासियों को हिला दिया और श्रीबाबू के हृदय पर इसका कठोर आघात पहुंचा।वे जब भी किसी सभा में जालियां वाले नृशंस हत्या काण्ड का वर्णन करते तो स्वयं भी रोते और श्रोताओं को भी रूला देते।इसके पश्चात् ही नागपुर प्रस्ताव के अनुसार श्रीबाबू ने असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी चलती वकालत छोड़ दी।1922 तक वे राजनीतिक गतिविधियों के सूत्रधार बन चुके थे और उनकी ख्याति देश के कोने कोने में पहुंच चुकी थी।1920 से 1945 के बीच वे सात-आठ बार जेल गए और उन्होंने अपनी आधी जवानी जेल में काट ली।द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों की सहभागिता का उन्होंने जमकर विरोध किया था और नारा दिया था:-न देगें एक पाई और न देगें एक भाई।
इतिहास साक्षी है कि भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के अथक प्रयास से 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, उनका सपना मानो साकार हुआ। इसी 15 अगस्त 1947 को विदेशी शासन के काले बादल छटे थे, विदेशियों के अत्याचारों का करका पात बंद हुआ था। उनके शोषण का शोणित स्राव रुका था, उस दिन की उषा वंदिनी नहीं थी ,उस दिन की सुहावनी किरणों पर दासता की कोई परछाई नहीं थी, उस दिन कहीं भी गुलामी की दुर्गंध नहीं थी ।उस दिन का सिंदूरी सवेरा पक्षियों की चहचहाहट और देशवासियों की खिलखिलाहट से अनुगूंजित हो रहा था ।जनजीवन ने मुद्दत के बाद नई अंगड़ाइयां ली थी, एक नई ताजगी का ज्वार सर्वत्र लहरा रहा था।
4 तप त्याग की प्रतिमूर्ति:-
श्रीबाबू बाबू चाहते तो स्वतंत्रता के बाद ऊंचा से ऊंचा पद और अधिक से अधिक पैसा प्राप्त कर सकते थे, लेकिन उन्हें पद और पैसा के लिए कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी।वे तो तप, त्याग एवं सेवा के प्रतिमूर्ति थे। वे जीवन भर लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पं जवाहरलाल नेहरू,आचार्य विनोबा भावे, स्वामी सहजानंद सरस्वती तथा सर गणेश दत्त के रचनात्मक कार्यों में निरंतर लगे रहे। उन्होंने ना घर की चिंता की न परिवार की अपितु उनके समक्ष राष्ट्रहित ही सर्वोपरि रहा ।ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है:-
नमन उन्हें मेरा शत बार।
सूख रही है बोटी बोटी,
मिलती नहीं घास की रोटी,
गढ़ते हैं इतिहास देश का, सहकर कठिन सुधा की मार।
नमन उन्हें मेरा शत बार।
जिनकी चढ़ती हुई जवानी, खोज रही अपनी कुर्बानी, जलन एक जिनकी अभिलाषा, मरण एक जिनका त्योहार।
दुखी स्वयं जग का दुख लेकर, स्वयं रिक्त सबको सुख देकर,
जिनका दिया अमृत जग पीता, कालकूट जिनका आहार।टेक
वीर तुम्हारा लिए सहारा,
टिका हुआ है भूतल सारा,
होते तुम ना कहीं तो कब का, उलट गया होता संसार।
चरण धूलि दो शीश लगा लूं,
जीवन का बल तेज जगा लूँ,,
मैंन निवास जिस मुक स्पन का,
तुम उसके सक्रिय अवतार।
नमन उन्हें मेरा सत बार।
5 स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ योद्धा:-
श्रीबाबू स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ योद्धा रहे हैं ।लिए गए संकल्प से वे कभी भी पीछे नहीं मुड़े। चाहे कितनी ही विपत्तियां राह में रोड़े बनकर आईं, लेकिन वे ना तो मुड़े न ही पीछे हटे। ऐसे ही भारत मां के कर्म वीरों के लिए खड़ी बोली के प्रथम महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने लिखा है-
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो,
किंतु उकताते आते नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो,
वीर दिखलाते नहीं।
हो गए एक आन में,
उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में,
वे ही मिले फूले फले।।
भारत के ऐसे कर्मयोगी पर भारतवासियों को नाज और ताज है।
6 जमींदारी प्रथा के उन्मूलक:-
श्रीबाबू का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी रहा है। उनके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं एक तरफ वे आजादी के हिमायती थे तो दूसरी तरफ वे किसानों का भी उद्धार चाहते थे। अतः स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन में उन्होंने सहयोग किया ।जिसके फलस्वरूप आजादी के बाद बिहार में सर्वप्रथम जमीदारी प्रथा का उन्मूलन 1956 में हुआ जिसका श्रीगणेश 1937 में हुआ था और इसका श्रेय श्रीबाबू को जाता है।जिसके फलस्वरूप खेत खलिहान के ऊपर किसानों का वाजिब हक प्राप्त हुआ। श्री बाबू ने नारा दिया था कि:-“जो अन्न उपजाएगा,शासन वही चलाएगा।”1965 में जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान ,जय किसान का नारा दिया, तो श्रीबाबू को स्वर्ग में लगा होगा कि उनके सपनों का भारत साकार हो रहा है।
7 बिहार के नव निर्माता:-
आधुनिक बिहार के नव निर्माण में जिन दो महापुरुषों का प्रमुख योगदान है,उनमे एक हैं बिहार केशरी डा श्रीकृष्ण सिंहा और दूसरे बिहार विभूति डा अनुग्रह नारायण सिंह।श्रीबाबू और अनुग्रह बाबू एक दूसरे के पूरक थे और एक के बिना दूसरे अधूरे थे।श्रीबाबू हृदय पक्ष के धनी थे तो अनुग्रह बाबू व्यवहार बुद्धि के।श्रीबाबू की वक्तृत्व कला अपना सानी नहीं रखती थी, तो अनुग्रह बाबू की प्रशासनिक क्षमता।दोनों की दृष्टि व्यापक और उदार थी।बिहार का 1920 से 1960 तक का युग दोनों के कार्यकलापों का दस्तावेज है।दोनों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी और पूरी जवानी जेलों में काट दी।दोनों ने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया और इस प्रकार बिहार के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया।
8 औद्योगिक क्रांति के जनक:-
श्रीबाबू जानते थे कि बिहार का सर्वांगीण विकास उद्योग धंधों के बिना नहीं हो सकता है।अतः देश का प्रथम खाद कारखाना उन्होंने सिंदरी में स्थापित करवाया।रांची में उन्होंने 1960 में हेवी इंजीनियरिंग कार्पोरेशन की स्थापना करवायी।दामोदर घाटी योजना, गंडक और कोशी योजनाएं, बरौनी तेल शोधक कारखाना श्रीबाबू की कीर्ति स्तंभ हैं।श्रीबाबू के कार्य काल में उद्योग, सामुदायिक विकास, कृषि सुधार, पशुपालन, सिंचाई, बिजली, परिवहन,संचार, स्वास्थ्य, जेल सुधार आदि के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई।इस प्रकार आज आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में बिहार में जो भी कार्य हुए,उसका सारा श्रेय श्रीबाबू को है।
9 महान शिक्षा प्रेमी:-
श्रीबाबू जानते थे कि शिक्षा विकास की धुरी है।इसके बिना आधुनिक बिहार का नवनिर्माण नहीं हो सकता है।अतः उन्होंने तत्कालीन शिक्षा मंत्री बद्रीनाथ वर्मा और तत्कालीन शिक्षा सचिव जगदीश चंद्र माथुर से बिहार में एक ऐसे आवासीय विद्यालय की स्थापना का संकल्प व्यक्त किया जिसका पूरे भारत में कोई विकल्प नहीं हो।परिणाम स्वरूप 1954 में नेतरहाट आवासीय विद्यालय की स्थापना साकार हुई।उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए सिंदरी में बी.आई.टी और मुजफ्फरपुर में एम.आई.टी.खोला।उच्च शिक्षा के विकास के लिए उन्होंने 1950 में मुजफ्फरपुर में बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना करायी ।मुंगेर में स्थापित श्रीकृष्ण शिक्षा सदन पुस्तकालय उनके अप्रतिम शिक्षा प्रेम का उदाहरण है।इस प्रकार श्रीबाबू ने शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी।
10 हरिजनोंद्धारक:-
श्रीबाबू समाज के हर तबके का विकास चाहते थे।उन्होंने सामाजिक विषमता दूर करने के लिए हरिजनों को देवघर के वैद्यनाथ मंदिर में प्रवेश दिलाया।उन्होंने 27 सितंबर 19 53 को वैद्यनाथ मंदिर देवघर का दरवाजा हरिजनों के लिए विधिवत् खुलवा दिया।
11 निष्काम कर्मयोगी:-
श्री बाबू निष्काम कर्मयोगी थे। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि “योग: कर्मसु कौशलम् “अर्थात् कर्म की कुशलता का नाम ही योग है। श्री बाबू जीवन पर्यंत अपने कर्म से विमुख नहीं हुए ,अपितु अपने कर्मों को कुशलता पूर्वक निष्पादित करते रहे।
संस्कृत की नीति परक सूक्ति में कहा गया है कि स्वर्ग से आए हुए जीवात्मा में 4 लक्षण पाए जाते हैं: दानशीलता, वाणी में मधुरता, देवार्चनता और आचार्यता:
स्वर्गाच्युतानामिह जीवलोके,
चत्वारि चिह्नानि वसंति देहे।
दान प्रसंगो, मधुरा च वाणी,
देवार्चनं पंडिततर्पणश्च।।
चाणक्य नीति श्लोक में यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार सोने की परीक्षा घर्षण, छेद, ताप और पीटने से होती है ,उसी प्रकार श्रेष्ठ पुरुष की परीक्षा उसकी विद्वता, सुशीलता कुलीनता और कर्मठता से होती है-:
यथा चतुर्भि: कनकं परीक्ष्यते, निघर्षणाच्छेदेनतापताडनै
तथा चतुर्भि: पुरुष:परीक्ष्यते,
श्रुतेन,शीलेन,कुलेन कर्मणा:।।
इन कसौटियों पर श्री बाबू सोलह आने खरे उतरते हैं। ऐसे नश्वर संसार में थोड़े नरवर हैं जो मरणोपरांत भी अमर हैं।महाकवि तुलसी ने इसकी घोषणा की है कि ते नरवर थोड़े जग माही। ऐसे महान अमर स्वतंत्रता सेनानी कर्मयोगी ,बिहार केशरी का परलोक गमन 31.1.1961 को हो गया।हम उनके बताए मार्ग पर चलें और उनके सपनो को साकार करें यही उनके प्रति सच्ची जयंती और श्रद्धांजलि होगी।
श्रीबाबू का संकल्प और नारा था:-
सारा लहू बदन का,जमीं को पिला दिया,
हम पर वतन का कर्ज था,हमने चुका दिया।
जय हिंद,जय बिहार जय श्री बाबू

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