अलविदा 2020

 

डा अनिता शर्मा
शिक्षाविद एवं साहित्यकार
वक्त रहता नहीं कहीं टिककर,आदत इसकी भी आदमी सी है
गुलजार की यह पंक्तियां–समय,काल,वक्त चाहे जो भी नाम दें बड़ी सटीक परिभाषित करती है इन्हें । सच है वक्त जैसा भी हो गुजर ही जाता है ,चाहे वो नकारात्मक हो चाहे वह सकारात्मक हो। वक्त एक ऐसा लफ्ज़ है जिसने सदियों को पनाह दी जिसमें समंदर से भी अधिक गहराई है। इस वक्त के कई रंग होते हैं कभी यह खुशनुमा तो कभी गमगीन।कुछ खट्टी मीठी यादों का सफर रहा अविस्मरणीय 2020 का । 2020 ने जब दस्तक दी थी तब कोरोना वुहान शहर में अपना तांडव मचा रहा था। तब शायद अवचेतन मन में भी ऐसी सोच नहीं थी जो हमने देखी। एक के बाद एक शहर और कई यूरोपीय देश में इसने विध्वंस मचा दिया। और अचानक सम्पूर्ण विश्व थम सा गया ।स्पर्श से फैलने वाले इस रोग ने अपनों को अपनों से दूर कर दिया।भारत में जब इसकी आहट हुई तो 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के पश्चात 23 मार्च से 30 जून तक 5 चरणों में कुल 98 दिनों तक देश को लॉकडाउन कर दिया गया । अस्पताल, बैंक, किराना जैसी अत्यावश्यक सेवा सुविधाओं को छोडक़र से शेष सब कुछ बंद था।लगभग एक अरब तीस करोड़ की जनता के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण था।लोगों के रोजगार बंद हुए तो दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति खराब होने लगी ।वे अपने घरों की ओर अपने गांवों की ओर पैदल ही चलने लगे।कई भयावह तस्वीरें सामने आई। तब मीडिया ने पूरी जिम्मेदारी से अपनी भूमिका का निर्वहन किया,और तसवीरों के सामने आते ही क्या केंद्र सरकार,क्या राज्य सरकार ,स्वयं सेवी संगठन,व्यक्ति विशेष के भी मददगार हाथ आगे बढेे। संवेदना और मानवता की तस्वीर सामने आई।
कोरोना वरीयर्स के रूप में मेडिकल स्टाफ,नर्स ,सरकारी महकमा सभी बगैर अपनी जान की चिंता किए लोगों की सेवा में जुट गए,कईयों ने तो अपनी जान भी गंवा दी।लोगों के जेहन में सुरक्षा को लेकर कई उपाय चलने लगे । लोगों ने आयुर्वेद को एक बार फिर अपनाया,हल्दी,अश्वगंधा,दालचीनी,कालीमिर्च,अदरख जैसे मसालेसम्पूर्ण विश्व पर छा गए।योग के माध्यम से अपने स्वास्थ्यपीआर लोगों ने ध्यान देना शुरू किया। ऑनलाइन दफ्तर ने घर के महत्व को परिभाषित किया तो दफ्तर आने जाने के बचे हुए समय ने सम्बन्धों को पुनर्जीवित किया। ब?े बुजुर्गों की विशेष देखभाल होने लगी। ऑनलाइन कक्षा से बच्चों ने पढने का एक नया तरीका जरूर सीखा लेकिन गुरु शिष्य के सम्बन्धों की मजबूती को भी यह फिर से समझा गया।
जिन लोगों के रोजगार छिन गए उन्होने अपनी जीविकोपार्जन के नए रास्तोंको तलाशा, कुछ ने फिर से पुरखों के रोजगार को शुरू कर स्वदेशी को ब?ाया तो कुछ ने बंजर जमीन को उर्वर बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। गाँवों में जहां पानी की कमी थी वहाँ लोगों ने श्रमदान केआर नहरों से पानी खींचा,और गड्ढों को खोदकर जेएल संरक्षित किया। मौसमी फल,फूल,सब्जियों की उपज बढी। सैनिटाइजर और मास्क तथा पीपीई किट का रोजगार चला। कहने का तात्पर्य यह की आपदा को अवसर में तब्दील कर फिर से स्वदेशी को बढावा मिलने से आत्मनिर्भरता की ओर हमारे कदम ब?े।रही सही कसर को चीन ने सीमा के उल्लंघन से पूरा कर दिया कई चीनी एप को बंद कर दिया गया। हमने स्वदेशी को अपनाना ज्यादा बेहतर समझा। सारा राष्ट्र एक जुट होकर सैनिकों के सम्मान में खड़ा हो गया। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी देश की स्थित बहुत मजबूत दिखाई पड़ी।

कोई ठहरता नहीं यूं तो वक्त के आगे,

वह जख्म कि जिसका निशा नहीं जाता
यह सत्य है कि जिन्होनेअपनों को खोया जिन्होने अपना रोजगार और अपना आसरा खोया उनके लिए संवेदना ही व्यक्त की जा सकती है,उनके दुखों का अंदाजा लगाना मुश्किल है बावजूद इसके मानवता का पाठ पढाता यह वर्ष,आत्मनिर्भर बनाता, संतोषम परं सुखम और वसुधैव कुटुंबकम को परिभाषित करता हुआ बीता । यह अविस्मरणीय रहा कई मायनों में,उम्मीदों की किरण छोडक़र जा रहा है की निकट भविष्य में कोरोना की वैक्सीन आ जाएगी और ?िंदगी फिर पटरी पर आ जाएगी। सम्बन्धों में उष्णता जो कोरोना काल में उत्पन्न हुई है,वह अवश्य फिर सदियों तक बरकरार रहेगी।

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