जमशेदपुर में फोर्टिस अस्पताल ने किया ने नेफ्रोलॉजी व कैंसर ओपीडी का किया विस्तार

बदलते लाइफ स्टाइल, अनियंत्रित मधुमेह व उच्च रक्तचाप से बढ़ रही किडनी की बीमारी: डा. रितेश
शहरवासियों को जमशेदपुर में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का प्रयास

जमशेदपुर : फोर्टिस अस्पताल, कोलकाता ने जमशेदपुर में नेफ्रोलॉजी व कैंसर ओपीडी सेवा का विस्तार किया है. इस पहल का उद्देश्य किडनी से जुड़ी बीमारियों व कैंसर के बढ़ते मामलों को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ाना, समय पर जांच को प्रोत्साहित करना व विशेषज्ञ चिकित्सकों के माध्यम से बेहतर इलाज उपलब्ध कराना है.
साकची स्थित एक होटल में आयोजित प्रेसवार्ता में फोर्टिस अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. रितेश कौंटिया ने कहा कि बदलती जीवनशैली अनियंत्रित मधुमेह, उच्च रक्तचाप व समय पर जांच की कमी के कारण किडनी की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. उन्होंने कहा कि कई किडनी रोग बिना लक्षण के बढ़ते हैं, इसलिए समय पर जांच बेहद जरूरी है. फोर्टिस अस्पताल में आधुनिक जांच सुविधाएं, डायलिसिस व किडनी ट्रांसप्लांट की उन्नत सेवाएं भी उपलब्ध हैं. उन्होंने कहा कि इस पहल के तहत फोर्टिस अस्पताल ने नेफ्रोलॉजी व ऑन्कोलॉजी के वरिष्ठ विशेषज्ञों की सेवाएं जमशेदपुर में मजबूत की हैं, जिससे मरीजों को बड़े शहरों तक जाने की जरूरत न पड़े. अस्पताल का लक्ष्य लोगों को रोकथाम, शुरुआती जांच व विशेषज्ञ इलाज के महत्व के बारे में शिक्षित करना है. वहीं शाम में फोर्टिस हॉस्पिटल ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉक्टरों के साथ सेमिनार का आयोजन किया जिसमें किडनी, कैंसर जैसी बीमारियों की रोकथाम, उपचार व शोध पर चर्चा की. इस मौके पर आईएमएस के अध्यक्ष डा. जी सी मांझी, सचिव डा. सौरव चौधरी, डॉ प्रभाकर यादव, डॉ एस के कुंडू, डॉ अमित कुमार, डॉ निर्मल कुमार,डॉ एच एस पॉल, डॉ आर के अग्रवाल, डॉ सुरेश कुमार आदि मौजूद थे.
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सुअर के अंगों से मिलेगा इंसान को नया जीवन
फोर्टिस अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. रितेश कौंटिया ने कहा कि देश में प्रति वर्ष करीब दो लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन किडनी नहीं मिलने के कारण करीब 15 हजार लोगों को ही ट्रांसप्लांट हो पाता है. उन्होंने कहा कि किडनी ट्रांसप्लांट की इलाज भी महंगा है लेकिन इसकी कमी होना भी सबसे बड़ी समस्या है. इस स्थिति में 1 लाख 85 हजार लोग किडनी की बीमारी से जूझते रहते हैं. उन्होंने कहा कि किडनी की आसानी से उपलब्धता नहीं होने के कारण फिलहाल अमेरिका में जीरो ट्रांसप्लांटेशन को लेकर रिसर्च चल रहा है. इसके तहत सुगर की किडनी व फेफड़े को मानव के अंगों के समान मॉडलाइज कर इंसान में प्रत्यारोपित करने पर रिसर्च चल रहा है. इस रिसर्च पर फिलहाल कुछ कामयाबी मिली है यदि ऐसा होता है तो आने वाले पांच वर्षों के बाद मरीजों को किडनी, फेफड़े या दिल की समस्या से नहीं जूझना पड़ेगा जिससे लोगों की भी जान बचायी जा सकती है. उन्होंने ने कहा कि प्रत्येक दस लोगों से एक व्यक्ति किडनी की बीमारी से ग्रसित है. 33 प्रतिशत लोग मधुमेह व 20 प्रतिशत लोग उच्च ब्लड प्रेशर से ग्रसित हैं. उन्होंने कहा कि अगर बीमारी की पहचान शुरुआती चरण में हो जाए तो फोर्थ पिलर ट्रीटमेंट के माध्यम से किडनी को खराब होने से काफी हद तक बचाया जा सकता है, हालांकि, किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया अब पहले की तुलना में आसान हुई है, लेकिन अंगों की भारी कमी अब भी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. उन्होंने कहा कि बिना चिकित्सकों की सलाह के पेन किलर या एंटी बायोटिक दवाओं का सेवन नहीं करें क्योंकि इसका असर स्वास्थ्य को प्रभावित करता.
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देश में कैंसर के मरीजोंं की संख्या में बढ़ोतरी, मौत का बनेगा बड़ा कारण: डा. देबप्रिय
फोर्टिस अस्पताल के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डा. देबप्रिय मोंडल ने कहा कि देश में कैंसर के मरीजों की संख्या मेंं तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. 2040 तक देश में सबसे अधिक मौत कैंसर के कारण होगी. उन्होंने लोगों से अपील की कि 30 वर्ष की उम्र के बाद कैंसर की नियमित जांच कराएं. अपने लाइफ स्टाइल, खानपान का ख्याल रखें. यदि कैंसर की शुरुआत में पहचान हो जाए तो 90 से 95 प्रतिशत लोगोंं की जान बचायी जा सकती है. उन्होंने कहा कैंसर के इलाज में भी नई-नई टैक्नोलॉजी आयी है. अब कीमोथेरेपी के बदले मरीजों को इम्यूनोथैरेपी दी जा रही है. घर पर दवा ले सकते हैं. कुछ दिनों के अंतराल पर इम्यूनोथैरेपी लेने की जरूरत रहेगी. उन्होंने कहा कि सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध है. आस्ट्रेलिया में यूट्रस कैंसर पर वैक्सीन व जांच के जरिए काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया, ऐसा करना देश भी में संभव है. इसके लिए लोगोंं को जागरुक होने की जरूरत है. महिलाओं में स्तन और सर्वाइकल कैंसर, जबकि इंसान में प्रोस्टेट, सिर व गर्दन के कैंसर अधिक पाए जाते हैं. उन्होंने कहा कि तंबाकू, गुटखा, शराब का सेवन करने से यह बीमारी होने की संभावना रहती है. उन्होंने कहा कि जब मामला गंभीर हो जाता है तो अस्पताल आते हैं इसलिए जरूरी है कि नियमित जांच करायें.

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