टाटा स्टील और यूनियन के बीच  100 वर्ष पुराना रिश्ता  बेहद दुर्लभ. नरेन्द्रन

 

टाटा स्टील प्रबंधन व यूनियन का संबंध आपसी विश्वास पर आधारित
जमशेदपुर, रिपोर्टर): टाटा स्टील के सीईओ व ग्लोबल प्रबंध निदेशक टी वी नरेन्द्रन ने कहा कि देश की स्टील उद्योग का भविष्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), सतत विकास व वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर निर्भर करेगा. चीपन की बढती स्टील उत्पादन क्षमता, बदलते भू राजनीतिक समीकरण व जलवायु परिर्वतन की चुनौतियां भारतीय स्टील उद्योग के सामने गंभीर चुनौतियोंं को खड़ा कर रही है. अपने को प्रतियोगी बने रहने के लिए इन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. टाटा स्टील के सामने भी 118 वर्षों के दौरान कई चुनौतियां आयी जिसका सामना कर आगे बढ़ते हुए आज इस दौर में है. उन्होंने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि कंपनी की 118 वर्षों की यात्रा प्रबंधन और यूनियन के बीच मजबूत संबंधों व आपसी विश्वास पर आधारित रही है.
मंगलवार को इंडियन नेशनल स्टील, मेटल, माइंस व इंजीनियरिंग इम्प्लॉयज फेडरेशन की दो दिवसीय कार्यकारिणी की बैठक में दूसरे दिन मुख्य अतिथि रूप में भाग लेने पहुंचे टाटा स्टील के सीईओ व ग्लोबल प्रबंध निदेशक टी वी नरेन्द्रन ने कहा कि जमशेदपुर की सबसे बड़ी विशेषता टाटा स्टील और यूनियन के बीच लगभग 100 वर्ष पुराना रिश्ता है. यह बेहद दुर्लभ है. टाटा वर्कर्स यूनियन ने हमेशा प्रबंधन व श्रमिकों के बीच सेतु की भूमिका निभायी है. यही वजह है कि कंपनी 118 वर्षों तक मजबूती से खड़ी रही. उन्होंने कहा कि दुनिया में बहुत कम स्टील कंपनियां हैं जो 100 साल से अधिक समय तक रही हैं. टाटा स्टील का अस्तित्व इसलिए संभव हुआ क्योंकि प्रबंधन और श्रमिकों ने ज़रूरत पडऩे पर त्याग किए.
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यूरोप में लगता प्रति टन 7,000 रुपये कार्बन टैक्स
उन्होंने कहा कि 20-25 वर्षों में एशिया से सस्ते उत्पादों की आपूर्ति ने विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को सहारा दिया, लेकिन अब यूरोप और अमेरिका में घरेलू नौकरियों की सुरक्षा को लेकर दबाव बढ़ रहा है. व्यापार अब हथियार बन गया है. टैरिफ का इस्तेमाल देशों को लाभ या हानि पहुंचाने के लिए किया जा रहा है. यूरोप में टाटा स्टील को अमेरिका में निर्यात करने के लिए 50 प्रतिशत शुल्क देना पड़ता है, जो बड़ा संकट है. उन्हांने कहा कि स्टील उत्पादन से प्रति टन 2 से 2.5 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है1 यूरोप में कार्बन टैक्स 70 यूरो प्रति टन यानी करीब 7,000 रुपये है, जो उत्पादन लागत को भारी रूप से प्रभावित करता है. भारत में अभी यह कम है, लेकिन आने वाले समय में यह बढ़ेगा। हमें इसके लिए तैयार रहना होगा. उन्होंन कहा कि
टाटा स्टील स्क्रैप-आधारित उत्पादन और रीसाइक्लिंग पर जोर दे रही है. कंपनी ने लुधियाना और रोहतक में स्क्रैप प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किए हैं. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरे से धातु निकालने की परियोजना पर भी काम चल रहा है. उन्होंने कहा कि अगले 20-30 वर्षों में रीसाइक्लिंग खनन से बड़ा क्षेत्र बनेगा.
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जिन्होंने खुद निखारा बने एक्सपर्ट, एआई को अवसर बनाएं
उन्होंने कहा कि जब उन्होंने 1988 में टाटा स्टील ज्वाइन किया था, तब 80 टाइपिस्ट पत्र टाइप करते थे. कंप्यूटर आने पर लोगों को डर था कि नौकरियां खत्म होंगी, लेकिन जिन्होंने खुद को निखारा, वे आगे चलकर एसएपी एक्सपर्ट बने. यही बदलाव का रास्ता है, पुन: कौशल विकास, न कि प्रतिरोध. उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से डरने की जरूरत नहीं है. तकनीक हमेशा बाधक नहीं होती. यह उत्पादकता बढ़ाने का साधन है. एआई को खतरे के बजाय अवसर के रूप में देखें. जो लोग सीखना जारी रखेंगे, वही टिक पाएंगे. उन्होंने कहा कि संगठनों और व्यक्तियों, दोनों को निरंतर सुधार की संस्कृति अपनानी होगी. तकनीक से डरने के बजाय उसका उपयोग करना सीखें। यही जीवित रहने और आगे बढऩे का एकमात्र रास्ता है.
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देश के विकास के लिए मजदूर, किसान का विकास जरूरी: रेड्डी
इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी संजीवा रेड्डी ने कहा कि वर्तमान समय में ट्रेड यूनियन की भूमिका बदल रही है. अब मजदूर और मालिक एक दूसरे को दुश्मन की तरह नहीं देखते है, बल्कि साझेदार की तरह चल रहे है. प्रबंधन को यूनियन और यूनियन को प्रबंधन की समस्याओं को समझना होगा, तभी उद्योग जीवित रहेंगे. मजदूरों को खुद को अपग्रेड करना होगा, स्किल सिखना होगा, मार्केटिंग जानना होगा. कम पैसे में श्रमिकों से काम लेकर देश का विकास संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि जब तक मजदूर, किसान का विकास नहीं होगा. देश का विकास संभव नहीं है.

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