फोटो चमकता आईना कार्यालय में पीडि़त युवकों की माता एवं परिजन सरेराह
जमशेदपुर 29 जून संवाददाता: सिदगोड़ा थाना द्वारा गत 26 जून को जिन 11 युवकों को आम्र्स एक्ट की चार विभिन्न धाराओं समेत अन्य लगभग 12 दफाओं में आरोपित कर उनमें से 10 को जो जेल भेजा है, उनमें कम से कम पांच ऐसे युवक हैं जिनका उक्त आरोपित धाराओं से जुड़ी कभी कोई न गतिविधि रही, न उनके पास कोई हथियार रहा। सबसे ज्यादा खौफनाक, चिंताजनक और असंतोष पैदा करने वाला पुलिस का यह रवैया सामने आया कि उसने स्वयं एक घर का ताला तोडक़र उसमें हथियार रखे। फिर पहले से ही हिरासत में लिये गये तीन युवकों को उस घर में बिठाकर अड्डाबाजी करते बताया। कागजी खानापूरी की, पुलिसिया कहानी की यह हद है।
उक्त कथित पांच युवकों में बारीडीह बस्ती पटना लाइन के महेश भूमिज के बंद घर में पुलिसवाले पहले ताला तोडक़र घुसे और कथित रूप से पूरी कहानी में जो देसी कट्टा और गोली बरामद दिखाई, उन्हें स्वयं एक पेटी में रखा.। पहले से उठाकर बिरसानगर थाना हाजत में रखे गये उक्त तीन युवकों को वहां घर में अड्डाबाजी दिखाकर गिरफ्तारी बताई गई है। इन तीन युवकों में उस घर में रहने वाला महेश भूमिज स्वयं बताया गया है। इसकी कहानी और दिलचस्प है. पुलिस ने 26 जून को सबको जेल भेजा लेकिन इसका ‘पूरा स्क्रिप्ट’ 21 या 22 जून की रात से ही लिखी गई। महेश भूमिज बारीडीह बस्ती बजरंग चौक के पास रवि पाण्डेय के टेंट हाउस में बिजली का काम करने वाला मजदूर है। गत 23 या 24 जून को उसके घर में पहले पुलिस गई। तब वह टेंट हाउस में था। उसे पता चला कि पुलिस घर पर आई है तब उसने अपने मालिक रवि पाण्डेय को यह बात बताई। रवि पाण्डेय ने उसे थाना जाने की सलाह दी और कहा कि हो सकता है कि तुम्हारी मां की हुई हत्या अथवा मकान विवाद में कोई नोटिस आया हो। महेश भूमित थाना गया तो वहां पुलिस ने उसे कोई बात नहीं कहकर लौटा दिया। कुछ देर बाद ही थाना में दलाल के नाम से चर्चित किसी श्रीवास्तव ने पुन: रवि पाण्डेय को फोन कर कहा कि वह महेश भूमिज को थाना भेज दे। रवि पाण्डेय ने श्रीवास्तव से पूछा क्या बात है, तो श्रीवास्तव ने बताया कि कोई बात नहीं, मेरे जिम्मे पर भेजो। उसे कुछ नहीं होगा। इस तरह महेश भूमिज पुलिस ने अपने दलाल के जरिये पहले ही थाना बुलवा लिया। दूसरी ओर उसे अपने घर में हथियार के साथ अड्डाबाजी करते एफआईआर में दर्शा दिया।
एफआईआर का गहन अध्ययन और विश्लेषण करने से पूरी कहानी स्वयं स्पष्ट हो जाती है। जिसका सचाई से कोई ताल्लुकात नहीं है। उक्त सभी 10 लडक़ों को एक एक कर इधर उधर से तीन-चार दिनों में पकड़ा गया और सिदगोड़ा थाना हाजत में कम जगह होने के कारण उन्हें बिरसानगर थाना की हाजत में रखा गया। उक्त पांच कथित रूप से निर्दोष बताने वाले युवकों के माता पिता का कहना है कि बिरसानगर थाना में इन्हें जमकर यातना दी गयी। उन्हें भूखे रखा गया। बिरसानगर थाना का कहना था कि मामला सिदगोड़ा थाना का है. अत: उनको खाना वहां से आनेपर ही मिल सकता है। इनके माता-पिता का कहना है कि पुलिस की पिटाई और यातना से भयभीत इन युवकों ने पुलिस द्वारा बनाई गई कहानी पर तोते की तरह अपनी स्वीकारोक्ति दी है। महेश भूमिज जब स्वयं थाना आया तो फिर उसे उसके घर में अन्य दोस्तों के साथ अड्डाबाजी करते कैसे माना जा सकता है?
आश्चर्य होता है कि अगर पुलिस जनहित में इस तरह अपराधियों की धर पकड़ और हथियारों की बरामदगी कर रही थी तब उसे उस घर के आसपास कोई स्वतंत्र गवाह क्यों नहीं मिला? जबकि पटना लाइन में चींटी माटे की तरह लोगों के घरौंदे हैं। एफआईआर में पुलिस बताती है कि पुलिस की गतिविधि देखकर आसपास के लोग हटगये। इसी लिये कोई स्वतंत्र गवाह नहीं मिला। यह अपने आप में पुलिस की कहानी पर संदेह पैदा करने के लिये पर्याप्त है। सिदगोड़ा थाने में ही पदस्थापित दो आरक्षियों को स्वतंत्र गवाह दर्शाया गया है। इसी तरह पूरी कहानी रचने और क्रियान्वित करने में किरदार में जो दो दारोगा शामिल थे, उनमें एक ने एफआईआर की तो दूसरे को आईओ बनाया गया? बाप पंच, बेटा संतोष, गधा मरते कोई न दोष…
प्रशासन और वरीय अधिकारी जांच करें कि हथियार उस घर में रखने के दौरान काले रंग की प्राइवेट एसयूवी से कौन लोग गये थे? उनमें कौन कौन पदाधिकारी शामिल थे। सिदगोड़ा में चेन छिनतई और अन्य अपराध बढे हुए हैं। पेट्रोलिंग दस्ता वैन लगाकर खड़ा रहता है, अपराधी अपना काम करते रहते हैं। मादक पदार्थ, गांजा,अवैध शराब चुलाई, नदी घाट से बालू उठाव का धंधा चालू रहता है।इस स्थिति में पुलिस ने अपराध रोकने और असली अपराधकर्मियों को पकडऩे में इतनी कठोरता और निर्दयता दिखाई होती तो न इस प्रकार कहानी रचने की नौबत आती न उसकी कार्रवाई गलत चर्चे में पड़ती। जानकार लोग बताते हैं कि नये एसएसपी की आंखों में सुर्खरू बनने और अपना नंबर बढ़ाकर किसी अन्य मालदार थाने में पोस्टिंग योग्य साबित करने के लिये इस प्रकार गलत सही,कायदा कानून को ठेंगे पर रखकर सिदगोड़ा थाना ने यह कहानी रच डाली।
वरीय आरक्षी अधीक्षक अपने स्तर से जेल भेजे गये युवकों में पीयूष डे, देवा,साहिल सिंह, महेश भूमिज, आतिश आदि युवकों के माता या पिता से मिलें और उनकी बातें सुन लें तब शायद उनका भी हृदय विचलित हुए बिना नहीं रहेगा। यह भी बताना चाहिये कि इन युवकों पर पहले कोई मामला था या नहीं। वरीय आरक्षी अधीक्षक के लिये पता करना बड़ा आसान है कि सिदगोड़ा थाने में काम करने वाले किस प्राइवेट ड्राइवर ने उक्त देसी कट्टा और गोली का इंतजाम किया है। इसी तरह सिदगोड़ा शिव सिंह बगान गमला दुकान के पास जो चार पहिया व्लू मारुति जेन कार चोरी का बताकर बरामद दिखाया गया, पुलिस को बताना चाहिये कि उसके असली मालिक कौन हैं और क्या उन्होंने कभी कहीं अपनी गाड़ी की चोरी की शिकायत दर्ज कराई है? उसके मालिक आज भी कहने को तैयार हैं कि उन्होंने कार पीयूष डे की मां को बेची है। उक्त कार में चोरी के दो मोबाइल फोन बरामद दर्शाये गये हैं। उनका रिकार्ड भी पुलिस को आम लोगों को बताना चाहिए। पता चलता है कि बिरसानगर थाने में रखकर जिस तरह तीन से चार दिन और रात इन युवकों की कुटाई की गई, उससे वे क्या, उनको भूत भी वही बकेंगे जो उनसे पुलिस बकवाना चाहती थी। क्या इस दिखावटी पुलिसिंग से बास्तविक अपराधियों में कानून का डर पैदा होगा और आम जन को सरेगाह होने वाली चेन छिनतई जैसे अपराधों से राहत मिल सकेगी?