सामयिक लेख/धर्म-संस्कृति
अनेक धार्मिक पुस्तकों में इस बात का उल्लेख है कि रामार्चा पूजा स्वयं आदियोगी भगवान शंकर द्वारा प्रदत्त विद्या है। ऐसा माना जाता है कि रामार्चा पूजा करने से सकल ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, रमन्ते योगिन, अस्मिन सा रामं उच्यते अर्थात योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं वो तत्व है राम। राम तो ठहरे सर्वव्यापी। इसीलिए इस अनुष्ठान का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में यह भी लिखा है कि एक बार कोई अगर रामार्चा पूजा करा ले तो उसे हजार अश्वमेध यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, जो निश्चल मन से, समर्पण की भावना के साथ इस पूजा में सम्मिलित मात्र होता है, उसके सारे पाप कट जाते हैं। यह पूजा पद्धति हजारों साल पुरानी है। शास्त्रों में वर्णन है कि अनेक देवी-देवता भी रामार्चा पूजा किया करते थे। अब दौर बदल गया है। लोगों की जीवन शैली बदल गई है। यह पूजा बेहद लंबी होती है और लोगों के पास वक्त की कमी है। इसके बावजूद देश के कई हिस्सों में रामार्चा पूजा का आयोजन होता है।
इस साल जमशेदपुर में भी रामार्चा पूजा का आयोजन हो रहा है। इसका आयोजन जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक श्री सरयू राय करा रहे हैं। इस बार रामार्चा पूजा का यह 25वां साल है। पूजा जमशेदपुर के बिष्टुपुर में आयोजित हो रही है। 10 जुलाई को रामार्चा पूजा होगी। 11 जुलाई को रुद्राभिषेक का आयोजन होगा। 11 जुलाई को ही महाप्रसाद का वितरण भी होगा। इस महाप्रसाद में सबसे आकर्षक होती है बक्सर के कुशल कारीगरों द्वारा बनाई गई हाथीकान पूड़ी। यह पूड़ी शुद्ध घी में बनाई जाती है। वैसे, जो इतने सक्षम नहीं, वो रिफाइन में भी यह पूड़ी बनाते हैं। स्वाद कमोबेश एक जैसा ही होता है।
जमशेदपुर में श्री सरयू राय के निवास पर होने वाली रामार्चा पूजा की तैयारियां हफ्तों से चल रही है। पूजन स्थल पर केले के थम से मंडप बनता है। मंडप को चांदनी से छाया जाता है। फिर फूल-माला से पूरे मंडप को सजाया जाता है। केले के थम पर आकर्षक नक्काशी भी की जाती है। एक बड़ी चौकी पर बेदी बनाई जाती है। फिर 33 कोटि देवी-देवताओं का आवाहन होता है। उनकी चार आवरणों में पूजा होती है। बेदी को विभिन्न रंगों से सजाया जाता है। इस के बाद रामार्चा पूजा की कथा होती है। यह बताया जाता है कि किन लोगों ने किया और उन्हें क्या प्राप्त हुआ। यह कार्य विनोद पांडेय जी की देखरेख में होता है।
विधायक सरयू राय बताते हैं-अब जमशेदपुर के लोगों के मन में यह बात रहती है कि गुरु पूर्णिमा के दिन रामार्चा पूजा होती है और श्रावण मास के प्रथम दिन प्रसाद का वितरण होता है, इस आयोजन में शरीक होना है। बड़ी संख्या में लोग पूजा में हिस्सा लेते हैं और प्रसाद भी ग्रहण करते हैं। रामार्चा पूजा में भगवान राम और उनके सभी सहयोगियों की पूजा होती है। ये वो सहयोगी होते हैं, जो भगवान राम के वनवास के दौरान लंका पर आक्रमण कर माता सीता को लाने में जुटे हुए थे। इसके अतिरिक्त मां काली और भगवान शंकर की भी इसमें विशेष पूजा होती है। भगवान राम के साथ विभीषण, अंगद, जाम्बवंत की भी पूजा होती है। राजा दशरथ और उनके परिवार के भी सभी सदस्यों की पूजा होती है। यह पूजा लंबी चलती है। हमारे यहां यह पूजा 2001 से अबाध चल रही है। इस पूजा के माध्यम से भगवान राम के प्रति अपने हृदय की उत्कंठा उनके सामने व्यक्त करने और प्रभु का मर्यादा पुरुषोत्तम का जो आचरण है, उसे समाज-जीवन में उतारने का प्रयास पूजा का उद्देश्य है।