*औद्योगिक समिति बनाने के बाद जेएनएसी को भंग क्यों नहीं किया?*
*क्या 86 बस्तियों से होल्डिंग टैक्स वसूला जाएगा, मालिकाना हक मिलेगा?*
*जमशेदपुर को असलियत में चलाएगा कौन?*
*कंपनी के प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादा और जन प्रतिनिधियों-सरकार के प्रतिनिधियों की संख्या कम क्यों?*
*जो इलाके लीज क्षेत्र के बाहर के हैं, उनकी साफ-सफाई कौन करेगा?*
*टाटा स्टील जो पैसे देगा, उसका ऑडिट होगा या नहीं?*
*जमशेदपुर*। जनता दल (यूनाइटेड) के वरीय नेता और स्वर्णरेखा क्षेत्र ट्रस्ट समिति के ट्रस्टी आशुतोष राय ने जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति के गठन और उसके बाद के उहापोह पर नाराजगी जाहिर की है। उनका कहना है कि जब जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति है ही तो जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति के गठन की जरूरत ही क्या थी? जब आपने औद्योगिक नगरी समिति का गठन कर ही दिया, गजट प्रकाशन हो ही गया तो फिर जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति को बरकरार रखने का क्या औचित्य है? क्या एक शहर को चलाने के लिए दो समितियों की जरूरत है?
यहां जारी बयान में आशुतोष राय ने कहा कि सरकार को क्या जल्दी थी, पता नहीं चल रहा। आनन-फानन में प्रशासक की नियुक्ति कर दी गई। यह सब नियम कानून को ताक पर रख कर किया जा रहा है। अब इस बात को लेकर उहापोह की स्थिति निर्मित हो रही है कि जब जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति के प्रशासक की नियुक्ति कर ही दी गई तो फिर जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति का क्या वजूद रह जाएगा?
आशुतोष राय ने कहा कि लोगों के मन में दो तरह की भावनाएं हैं। पहला-जेएनएसी स्वतः भंग हो जाएगी। दूसरा-जेएनएसी को भंग कर देना चाहिए था। फिर सवाल यह उठता है कि इतने लंबे समय से जो जेएनएसी के साथ काम कर रहे थे, जो उसके कर्मचारी थे, उनका क्या होगा। ना तो उनके मर्जर का कोई नोटिफिकेशन निकला, ना ही उसे भंग किया गया। यह समझ से परे है कि विकास होगा कैसे जमशेदपुर में? कौन करेगा?
उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में सरकार और जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति के बीच क्लैश देखने को मिल सकता है। एक तरफ यह हो रहा है कि जमशेदपुर औद्योगिक नगरी समिति के चेयरमैन प्रभारी मंत्री/ स्थानीय मंत्री होंगे। दूसरी तरफ कारपोरेट के वीपी (उपाध्यक्ष) और जिले के उपायुक्त भी समिति के उपाध्यक्ष होंगे। यह नई चीज होगी। पहली बार ऐसा होगा कि एक समिति में दो-दो उपाध्यक्ष होंगे। एक प्राइवेट सेक्टर से और एक सरकार की तरफ से। अगर किसी बैठक में प्रभारी मंत्री/स्थानीय मंत्री और डीसी नहीं बैठते हैं तो प्राइवेट सेक्टर के वीपी बैठक की अध्यक्षता करके फैसला ले सकते हैं। यह तो अजीब बात होगी।
श्री राय ने कहा कि बड़ा सवाल यह है कि जो इलाके लीज क्षेत्र के बाहर के हैं, उनकी साफ-सफाई कौन करेगा? सड़क, नाली, पानी की व्यवस्था कौन करेगा? 86 बस्तियों (वास्तव में 144) में जनसुविधाएं मुहैय्या कौन कराएगा? अगर टाटा स्टील सुविधा देना प्रारंभ करेगा तो उसका अंशदान कितना होगा? सरकार का अंशदान कितना होगा? सरकार जो धन देती है विकास कार्यों के लिए, वह आएगा या नहीं? 15वें वित्त का जो धन आता है, वह आएगा या नहीं? किस रुप में खर्च होगी धनराशि? टाटा स्टील जो पैसे देगा, उसका ऑडिट होगा या नहीं?
आशुतोष राय ने आरोप लगाया कि यह औद्योगिक नगरी समिति आनन फानन में, दबाव में गठित की गई है। कोई एसओपी तैयार है या नहीं। अगर है तो जनता के बीच में क्यों नहीं लाया गया? उन्होंने आशंका जताई कि कंपनी के प्रतिनिधि, सरकार के प्रतिनिधि और जनप्रतिनिधि में टकराव की स्थिति पैदा होगी। एक तरफ एक भारतीय प्रशासनिक अधिकारी उस कमेटी के उपाध्यक्ष रहेंगे तो दूसरी तरफ प्राइवेट सेक्टर के वाइस प्रेसीडेंट भी उसके उपाध्यक्ष रहेंगे। वहां डीसी की क्या भूमिका होगी? मेंबर सेक्रेट्री की क्या भूमिका रहेगी? जेएनएसी के जो कर्मचारी हैं, उनकी क्या भूमिका रहेगी? जेएनएसी के अंतर्गत लगभग 250 संवेदक हैं। उनकी भूमिका क्या रहेगी? वो काम करेंगे या नहीं? क्या उनका रजिस्ट्रेशन रद होगा? ये सवाल इसलिए क्योंकि इनकी कोई व्यवस्था नहीं है गजट में।
श्री राय ने कहा कि औद्योगिक नगरी समिति का गजट मात्र एक पन्ने का निकला। होना यह चाहिए था कि यह समिति फंक्शन कैसे करेगी, एसओपी क्या होगा, इसे विस्तृत रुप में देना चाहिए था ताकि लोगों को चीजों को समझने में आसानी हो। यह सरकार के मंसूबे पर सवालिया निशान लगाता है। सरकार को देखना चाहिए था कि सोनारी के जवाहरलाल शर्मा का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उस पर क्या फैसला आता है, इसे देख कर ही सरकार औद्योगिक नगरी समिति को लेकर कोई कदम उठाती।
उन्होंने कहा कि आम जनता में भी इस बात को लेकर उहापोह है कि अब उन्हें बिजली-पानी, साफ-सफाई देगा कौन? बिरसानगर में होल्डिंग टैक्स वसूला जाएगा या नहीं? अगर आप सुविधा देकर होल्डिंग टैक्स वसूलेंगे तो फिर उन्हें आपको मालिकाना हक भी देना पड़ेगा।
श्री राय ने कहा कि बड़ा सवाल यह भी है कि जनप्रतिनिधि अब किसके पास अपनी बात रखेंगे? अनुशंसा किसको भेजेंगे? यहां एमपी-एमएलए फंड आता है। उस फंड को खर्च करने की क्या व्यवस्था होगी? कुछ भी पता नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को स्थानीय जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन और टाटा स्टील के प्रतिनिधि संग बैठ कर चीजों को तय कर लेना चाहिए। एसओपी बना कर उसे पब्लिक डोमेन में डाल देना चाहिए।
आशुतोष राय ने जानना चाहा कि जब औद्योगिक समिति का प्रशासक नियुक्त कर दिया गया तो जेएनएसी को भंग क्यों नहीं कर दिया गया? यहां तो दोतरफा व्यवस्था सरकार ने बना रखा है। एक तरफ प्रशासक हैं, दूसरी तरफ उप नगर आयुक्त भी हैं। अब इन दोनों में व्यवस्था देखेगा कौन? यह तो असमंजस की स्थिति है। व्यवस्था ऐसी है कि प्रभारी मंत्री और स्थानीय मंत्री, दोनों ही इस औद्योगिक नगरी समिति के अध्यक्ष होंगे। सवाल है कि प्रभारी मंत्री यहां की समस्याओं को कितना समझेंगे? जिले के उपायुक्त इसके चेयरमैन होते और बाकी सारे इसके मेंबर होते तो बात कुछ और होती। सदस्यों में सरकार और कंपनी के सदस्यों की संख्या बराबर होनी चाहिए थी। यहां तो खेल ही उल्टा है। यहां सरकार और जनता के प्रतिनिधि कम और कारपोरेट के प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादा है। यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर किस तरफ जाएगा।