विकसित भारत बनने की होड़, कीमत वन्य जीवों को अपनी जान दे कर चुकाना पड़ रहा है !

*क्या सिर्फ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का होना पर्याप्त है?* :

*जमशेदपुर,
झारखंड की पहचान उसके जंगलों में मौजूद वन्य जीव एवं खनिज संपदाओं से है। विकासित देश बनने की होड़ में भारत सरकार ने अपनी खनिज संपदाओं का भरपूर लाभ लेने का फैसला किया है और अपने इस फैसले से समय-समय पर दुनिया के अन्य देशों को भी अवगत कराया है। इन खनिज संपदाओं के साथ भारत के वन, वन्य जीवों ओर वन्य क्षेत्र के ग्रामीणों का सीधा जुड़ाव है। मगर विकसित बनने की होड़ में जब मनुष्य के द्वारा प्रकृति एवं जंगल का दोहन किया जाता है तो कई बार वन्य जीवों का मनुष्यों के साथ संघर्ष की खबर आम बात सी हो गई है। इसी क्रम में एक बार फिर हाथी की मौत की दुखद खबर समाचार पत्रों में सामने आई। वर्ष 2025 के अभी तक विभिन्न दुर्घटनाओं जिसमे रेल हादसों जैसे में क़रीब 11 हाथियों की मौत अब तक हो चुकी है जो की हम सभी के लिए सोचनीय विषय हैं l
19 जुलाई 2025 को झारखंड के अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट ने एक बार फिर मानव और वन्य जीवों के बीच टकराव की भयावह स्थिति को उजागर किया हैं। यह इस क्षेत्र की पहली घटना नहीं है, ये स्थिति रही तो ना ही आखरी हो सकती है। क्योंकि यह एक गंभीर विचारणीय विषय है। हमारे पास वन्य जीव का संरक्षण के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 तो है मगर सवाल अब यह बना है कि सिर्फ़ उसका होना पर्याप्त है क्या ? वन जीवों के साथ लगातार दुर्घटनाओं का होना हमारे एवं सभी भारतीयों के लिए एक चिंतन का विषय होना चाहिए। इस तरह के दुर्घटनाएं हमारे वर्तमान वन जीवों के प्रति हमारी लचर व्यवस्था को दर्शाती है।
*“कानून विद्यमान है किंतु क्रियान्वयन अनुपस्थित है।”*
वन्यजीव अभयारण्य या जंगलों से गुजरने वाली ट्रेनों की गति नियंत्रित नहीं की जाती, और न ही पर्याप्त निगरानी उपकरण स्थापित किए जाते हैं। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने समय-समय पर हाथी गलियारों में कड़ी निगरानी रखने के निर्देश जारी किए हैं; फिर भी, जमीनी हकीकत इन निर्देशों से काफी अलग है। रेलवे और वन विभाग के बीच समन्वय की कमी, विशेषज्ञों का मत है कि रेल मंत्रालय और वन विभाग के बीच समन्वय की अनुपस्थिति के कारण ऐसी घटनाएँ पुनः घटित होती हैं।दुर्घटना के पश्चात जाँच और शव परीक्षण अवश्य होते हैं, किंतु न तो संरचना में सुधार होता है और न ही अधिकारियों पर कोई उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाता है। वर्तमान में जब देश स्मार्ट प्रौद्योगिकी की दिशा में अग्रसर है, तो हाथियों की सुरक्षा के लिए रेलवे ट्रैक पर थर्मल कैमरे, सेंसर अलार्म और रात में गति सीमा जैसे उपायों को लागू करने का विचार क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?  इससे दुर्घटना से पूर्व ही चेतावनी जारी की जा सकती है। वन्यजीव संरक्षण /अधिकार मानवाधिकार के समान महत्वपूर्ण हैं। एक विधिवक्ता के रूप में, मेरा विश्वास है कि जब संविधान हमें पर्यावरण संरक्षण का मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A(g)) प्रदान करता है, तो हमारी जिम्मेदारी है कि हम केवल विकास की ओर अग्रसर न हों, बल्कि सतत विकास की दिशा में भी बढ़ें, जिसमें मानव और वन्यजीव दोनों के जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित हो। जन जागरूकता और नीतिगत परिवर्तन आवश्यक हैं।  इन घटनाओं पर केवल सहानुभूति व्यक्त करना पर्याप्त नहीं है; अब कठोर उपायों की आवश्यकता है:  दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में गति सीमा को अनिवार्य किया जाए।  ट्रैक के चारों ओर चेतावनी बोर्ड और डिजिटल निगरानी प्रणाली स्थापित की जाएं।  रेलवे और वन विभाग के लिए संयुक्त कार्य योजना तैयार की जाए।  स्थानीय निवासियों को रिपोर्टिंग और निगरानी में सम्मिलित किया जाए।
हर बार जब किसी वन्यजीव की मृत्यु होती है, जो चित्र हमारे समक्ष आते हैं, वे केवल एक प्राणी के निधन का संकेत नहीं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन के विघटन की चेतावनी हैं।  यह कर्तव्य सभी नागरिकों का होना चाहिए कि कानून का अध्ययन ही नहीं बल्कि कानून व्यावहारिक रूप में लागू होना चाहिए।

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