पेसा को लेकर हाईकोर्ट सख्त.. सचिव को टाइम फ्रेम तय करने का आदेश, बालू-खनिज नीलामी पर रोक बरकरार

रांची : झारखंड हाईकोर्ट ने पेसा नियमावली अब तक लागू नहीं करने पर कड़ी नाराजगी जताई है। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए पंचायती राज विभाग के सचिव मनोज कुमार को अगले मंगलवार तक नियमावली लागू करने का टाइम फ्रेम तय करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 23 दिसंबर को होगी।

हाईकोर्ट अधिवक्ता धीरज कुमार ने बताया कि सुनवाई में सचिव की ओर से अदालत को अवगत कराया गया कि प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा जा चुका है। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता अभिषेक रॉय, ज्ञानंत कुमार सिंह और अजीत कुमार ने दलीलें पेश कीं।
बालू और लघु खनिज नीलामी पर रोक जारी

पेसा नियमावली लागू नहीं होने से संबंधित अवमानना याचिका पर 9 सितंबर को खंडपीठ ने राज्य में बालू और लघु खनिज के आवंटन पर रोक लगा दी थी। सरकार ने 4 दिसंबर को रोक हटाने का आग्रह किया, लेकिन अदालत ने इनकार कर दिया। पूर्व सुनवाई में पीठ ने सचिव से पूछा था कि जनहित याचिका पर आदेश के 13 माह बीतने के बाद भी नियमावली क्यों नहीं लागू की गई।ॉ
बता दें कि पेसा नियमावली लागू नहीं होने पर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने 9 सितंबर को राज्य में बालू और लघु खनिज के आवंटन पर रोक लगा दी थी. राज्य सरकार की ओर से 4 दिसंबर को रोक का हटाने का दोबारा आग्रह किया गया था, लेकिन खंडपीठ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था.
पूर्व की सुनवाई के दौरान आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने खंडपीठ को बताया था कि बालू की नीलामी करने का राज्य सरकार का फैसला गैरकानूनी था, क्योंकि संसद द्वारा 1996 में बनाए गए क्कश्वस््र एक्ट की वजह से मौजूदा नियम लागू नहीं होते. क्कश्वस््र एक्ट में ग्राम सभाओं की सहमति जरूरी है. लिहाजा, राज्य सरकार द्वारा क्कश्वस््र नियम लागू करने के बाद ही ग्राम सभाएं बनाई जा सकती हैं

पेसा एक्ट और विवाद

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम-1996 (पेसा एक्ट) अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार देता है, खासकर खनिज संसाधनों के प्रबंधन में। आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की याचिका में तर्क है कि पेसा नियमावली लागू हुए बिना बालू-खनिज की नीलामी गैरकानूनी है, क्योंकि ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य है। राज्य सरकार द्वारा नियमावली अधिसूचित करने के बाद ही ग्राम सभाएं प्रभावी हो सकती हैं। यह मामला आदिवासी अधिकारों और संसाधन प्रबंधन से जुड़ा महत्वपूर्ण मुद्दा है।

 

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