एक मार्च 2027 से जनगणना, दो चरणों में पूरी होगी प्रक्रिया,हर घर पहुंचकर जाति भी पूछी जाएगी

नई दिल्ली : 15 साल बाद जनगणना की प्रक्रिया शुरू होगी. गृह मंत्रालय ने इसकी पुष्टि कर दी है. एक मार्च 2027 से जनगणना को लेकर काम शुरू होगा.
वैसे, आमतौर पर प्रत्येक 10 साल पर जनगणना कराई जाती है. लेकिन कोविड की वजह से जनगणना टाल दी गई थी. लद्दाख, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में अक्टूबर 2026 से प्रकिया की शुरुआत की जाएगी. बाकी के राज्यों में 2027 में जनगणना कराई जाएगी. इस जनगणना के साथ जातिगत जनगणना को भी शामिल किया गया है. मोदी सरकार ने कुछ दिन पहले ही जाति जनगणना को लेकर फैसला किया था. लंबे समय से विपक्ष इसकी मांग कर रहा था.
आपको बता दें कि देश में सबसे पहली बार जनगणना 1881 में कराई गई थी. इसकी प्रक्रिया 1872 में ही शुरू हो गई थी. उस समय देश की आबादी करीब 25.38 करोड़ थी. तब से देश में हरेक 10 साल बाद जनगणना होती रही है.

1931 में पहली बार जाति से संबंधित कॉलम जोड़ा गया. यानी लोगों से जाति के बारे में पूछा गया. हालांकि, जाति को लेकर विवाद बढ़ गया. इसलिए 1941 में जाति संबंधित जो भी आंकड़े एकत्रित किए गए थे, उसे सार्वजनिक नहीं किया गया. इसलिए देश में इस वक्त जाति को लेकर जो भी आंकड़े दिए जा रहे हैं, इसे 1931 में ही संकलित किया गया था.

हाल के कुछ वर्षों में विपक्षी दलों के नेताओं ने जाति जनगणना को लेकर एक बार फिर से मोर्चा खोल दिया. इसके बाद मोदी सरकार ने जाति जनगणना कराने का फैसला किया है. सूत्रों के अनुसार अब जिस जनगणना को लेकर खबरें आ रही हैं, उसमें जाति जगणऩा को भी जोड़ा गया है.
आगामी जनगणना से क्या हैं अपेक्षाएं?

जनगणना 2027 सिर्फ जनसंख्या की गणना भर नहीं होगी, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. वंचित वर्गों की सही पहचान और उनके लिए योजनाओं की बेहतर दिशा तय हो सकेगी. आरक्षण व्यवस्था और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर तथ्यात्मक और अद्यतन आंकड़े उपलब्ध होंगे. नीतियों और योजनाओं का पुनर्गठन संभव होगा जो समावेशी विकास की दिशा में उपयोगी हो सकता है.

2011 में आखिरी बार हुई थी जनगणना

भारत में पिछली जनगणना वर्ष 2011 में की गई थी, जो दो चरणों में पूरी हुई थी. पहला चरण मकान सूचीकरण (HLO) और दूसरा चरण जनगणना (PE). 2021 में अगली जनगणना प्रस्तावित थी, जिसकी सभी तैयारियां भी पूरी हो गई थीं, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा. यदि यह जनगणना समय पर होती, तो 2021 तक इसकी अंतिम रिपोर्ट सामने आ चुकी होती.
एक और महत्वपूर्ण बात है कि 1951 में जो जनगणना हुई, उसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को ही जाति के नाम पर क्लासिफाइड किया गया था. इसमें विवाह की अवधि और परिवार के आकार , जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या और उस समय जीवित बच्चों की संख्या शामिल थी. इसमें दुर्बलताओं और परिवार के मुखिया के साथ व्यक्ति के रिश्ते पर भी सवाल थे. इसके अलावा इसमें रोजगार के बारे में भी सवाल पूछा गया था.

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