पटना 18 अगस्त
भारतीय राजनीति में गठबंधनों की आंतरिक कलह कोई नई बात नहीं है, लेकिन बिहार में कल वोट अधिकार यात्रा से यह अटकलें तेज़ हो गई है कि एनडीए की तरह अब महागठबंधन में भी लीडरशिप की जंग छिड़ सकती है. बिहार हमेशा से राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र रहा है. यहां अब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच ‘बड़े भाई’ की भूमिका तय करने का मैदान बनता दिख रहा है
दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सासाराम में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान ऐसी कही, जिसने सबका ध्यान अपनी तरफ से खींचा. उन्होंने साफ कहा, ‘राहुल बिहार में रक्षक बनकर आएं है. तेजस्वी उनका साथ दे रहे हैं.
खरगे के इस बयान से सवाल यह उठने लगा कि क्या यह यात्रा महज चुनावी मुद्दों पर फोकस है, या इससे बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के बीच लीडरशिप की खींचतान उजागर हो रही है? तेजस्वी या राहुल बिहार में किसका कद बड़ा है? चलिये इस यात्रा से समझते हैं…
जगजाहिर है नीतीश और चिराग की लड़ाई
एनडीए में नीतीश कुमार, चिराग पासवान और दूसरे सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग और लीडरशिप की जंग जगजाहिर है. हालांकि अब यही स्थिति महागठबंधन में नजर आ रही है. बिहार में आरजेडी का आधार मजबूत है, जहां तेजस्वी यादव युवा चेहरे के रूप में उभरे हैं. वहीं, कांग्रेस राहुल गांधी की ब्रैंडिंग के जरिये अपनी जमीन तलाश रही है.
17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ इसी संघर्ष का प्रतीक बन गई है. यह यात्रा 16 दिनों तक चलेगी, 25 जिलों से गुजरेगी और 1300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. इस दौरान कांग्रेस और आरजेडी का फोकस मुख्य रूप से वोटर लिस्ट में गड़बड़ी और चुनावी धांधली पर रहेगा. लेकिन सतह के नीचे, यह यात्रा बिहार में किसका कद बड़ा है, यह तय करने की कोशिश लगती है.
खरगे को क्या आया गुस्सा?
खरगे का बयान इसी संदर्भ में महत्वपूर्ण है. सासाराम की रैली में खरगे ने कहा कि राहुल गांधी ‘रक्षक’ हैं, मतलब जनता के अधिकारों के संरक्षक और तेजस्वी उनका साथ दे रहे हैं. महागठंबधन की इस रैली में भीड़ भी खूब दिखी, लेकिन उनमें उत्साह कम या शोर ज्यादा दिख रहा था. शायद यही वजह रही कि खरगे भी भड़ककर कह बैठे, ‘सुनना है तो सुनो, नहीं तो 10 लोग भी रहेंगे तो भी भाषण दूंगा.’ उनका यह बयान महागठबंधन की एकता पर भी सवाल उठाता है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान राहुल को मुख्य चेहरे के रूप में स्थापित करने की कोशिश है, जबकि तेजस्वी यादव, जो बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं, स्थानीय स्तर पर ज्यादा प्रभावशाली हैं. क्या यह यात्रा तेजस्वी को राहुल के ‘छोटे भाई’ की भूमिका में धकेल रही है?
खरगे के इस बयान से सवाल यह उठने लगा कि क्या यह यात्रा महज चुनावी मुद्दों पर फोकस है, या इससे बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के बीच लीडरशिप की खींचतान उजागर हो रही है? तेजस्वी या राहुल बिहार में किसका कद बड़ा है?
17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ इसी संघर्ष का प्रतीक बन गई है. यह यात्रा 16 दिनों तक चलेगी, 25 जिलों से गुजरेगी और 1300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. इस दौरान कांग्रेस और आरजेडी का फोकस मुख्य रूप से वोटर लिस्ट में गड़बड़ी और चुनावी धांधली पर रहेगा. लेकिन सतह के नीचे, यह यात्रा बिहार में किसका कद बड़ा है, यह तय करने की कोशिश लगती है.
खरगे को क्या आया गुस्सा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान राहुल को मुख्य चेहरे के रूप में स्थापित करने की कोशिश है, जबकि तेजस्वी यादव, जो बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं, स्थानीय स्तर पर ज्यादा प्रभावशाली हैं. क्या यह यात्रा तेजस्वी को राहुल के ‘छोटे भाई’ की भूमिका में धकेल रही है?
तेजस्वी-राहुल में कद की जंग!
बिहार की राजनीति में आरजेडी का वोट बैंक यानी यादव, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग तेजस्वी यादव को मजबूत बनाते हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, और तेजस्वी ने खुद को नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में पेश किया. वहीं, पिछले कई चुनावों से यहां कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा है, लेकिन राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ और अब ‘वोटर अधिकार’ यात्राएं कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने की कोशिश हैं. इस यात्रा में तेजस्वी का शामिल होना एकता का संदेश देता है, लेकिन इससे ‘बड़े भाई’ की बहस छिड़ गई है.