– गरीबी, दर्द और जड़ी-बूटी से बढ़ा जख्म, डाक्टर बने सहारा
जमशेदपुर : आज के दौर में जहां इलाज और अस्पताल का नाम आते ही सबसे पहले बिल और खर्च का डर मरीज व उनके परिवार को तोड़ देता है, वहीं जमशेदपुर से एक ऐसी मिसाल सामने आई जिसने यह साबित कर दिया कि डाक्टर सिर्फ पेशे से डाक्टर नहीं होते, दिल से भी होते हैं। पटमदा की दो गरीब महिलाओं के जीवन में उम्मीद तब लौटी जब एक डाक्टर ने पैसों को नहीं, इंसानियत को प्राथमिकता दी। यह कहानी सिर्फ दो जिंदगी बचाने की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो कहती है कि मानवता आज भी जिंदा है, बस ऐसे लोग कम दिखाई देते हैं। पटमदा के दिघी गांव की मंजूला महतो बीते छह माह से पेट दर्द से परेशान थी। जड़ी-बूटी के सहारे वह किसी तरह दर्द सहती रही लेकिन स्थिति गंभीर हो चुकी थी। जांच में पता चला कि उसकी बच्चेदानी में ट्यूमर है जो आंत से चिपक गया है। गंगा मेमोरियल हास्पिटल में सर्जरी का खर्च करीब 60 हजार रुपये बताया गया। खर्च सुनते ही मंजूला रो पड़ी। उसने डाक्टर से कहा, घर में दो बछड़ा और एक बकरी है, इसे बेचकर जो पैसा मिलेगा वह दे देगी। इस पर डा. नागेंद्र सिंह ने कहा, न आपको बछड़ा बेचना है, न बकरी। इलाज मैं मुफ्त करूंगा। और उन्होंने बिना एक रुपये लिए उसकी जान बचाई।
इसी तरह पटमदा की ही अंबिका कर्मकार की हालत भी दयनीय थी। पति का एक साल पहले निधन हो चुका था। बाल-बच्चा भी कोई नहीं। विधवा पेंशन से जीवन चलती थीं। बच्चेदानी में ट्यूमर के कारण दर्द बढ़ता जा रहा था लेकिन पैसे नहीं थे तो जड़ी-बूटी से इलाज करती रही और स्थिति खराब होती गई। डा. नागेंद्र सिंह ने उनका भी मुफ्त में सर्जरी कर उन्हें जीवनदान दिया। दो महिलाओं का उपचार, बिना पैसे, बिना शर्त, यह सिर्फ इलाज नहीं, मानवता की जीत है। ऐसे डाक्टर वास्तव में समाज की असली प्रेरणा हैं.
