अगर मिली गड़बड़ी   तो पूरा SIR रद्द कर देंगे: सुप्रीम कोर्ट

बिहार में SIR पर जो भी फैसला होगा, वो पूरे देश में लागू होगा

आधार को 12वें दस्तावेज़ के रूप में मान्यता देने के आदेश पर पुनर्विचार करने से इनकार किया,प्रक्रिया रद्द…

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आज बिहार SIR को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए साफ कर दिया कि आधार को 12वें दस्तावेज़ के रूप में मान्यता देने के अपने पूर्व आदेश पर वह पुनर्विचार नहीं करेगा. इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि यदि चुनाव आयोग अन्य राज्यों में भी SIR प्रक्रिया लागू करता है और वहां के लोग भी इस मामले में याचिका दायर करते हैं, तो उनकी भी सुनवाई की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मानते हैं कि भारत निर्वाचन आयोग, बिहार में कानून और अनिवार्य नियमों का पालन कर रहा है.
अगर मिली गड़बड़ी तो प्रक्रिया रद्द…

बिहार एसआईआर पर टुकड़ों में राय नहीं दे सकते, अंतिम फैसला पूरे देश के लिए लागू होगा. बिहार में एसआईआर कवायद की वैधता पर अंतिम दलीलें सुनने के लिए उच्चतम न्यायालय ने सात अक्टूबर की तारीख तय की है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हम मानते हैं कि संवैधानिक प्राधिकार, भारत निर्वाचन आयोग, बिहार में कानून और अनिवार्य नियमों का पालन कर रहा है. यदि हमें बिहार चुनाव के किसी भी चरण में निर्वाचन आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली में कोई अवैधता मिलती है, तो पूरी प्रक्रिया रद्द कर दी जाएगी.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बिहार मामले में जो भी निर्णय लिया जाएगा, वह पूरे देश में लागू होगा. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पैरा लीगल वॉलंटियर्स ने 3000 से अधिक दावों के पंजीकरण में मदद की है.
ADR की आपत्तियां और आंकड़े

जनहित याचिका दायर करने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने कहा कि अगर संविधान की मूल भावना के उल्लंघन के संकेत मिलते हैं, तो SIR प्रक्रिया को रोका जाना चाहिए. इसके साथ ही ADR ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग को कानून के तहत ही सुना जाना चाहिए और उनके अनुसार, प्रारंभिक आंकड़ों में 7.89 करोड़ मतदाता थे, जिनमें से 4.96 करोड़ स्वतः ही ड्राफ्ट रोल में शामिल हो गए. अनुमान है कि 6.84 करोड़ मतदाताओं के पास आधार है.

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कई लोग अधिकार से वंचित

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “जब यह संदेह की अवधि समाप्त हो जाएगी, तब सारी जानकारी भी बिल्कुल साफ हो जाएगी” उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों को सूची से बाहर किया जा रहा है, वे केवल दस्तावेज़ों की अनुपस्थिति के कारण बाहर हो रहे हैं. उन्होंने सभी पक्षों को अपने तर्कों का सारांश तैयार करने को कहा और बताया कि अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी. वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने की एक अविध होती है, और इस प्रक्रिया के चलते कई लोग अवैध रूप से मताधिकार से वंचित हो जा रहे हैं.

अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले की त्वरित सुनवाई की मांग की, क्योंकि चुनाव आयोग ने अब इसे पूरे देश में लागू करने की घोषणा कर दी है. प्रशांत भूषण ने चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग अपनी ही मैनुअल का पालन नहीं कर रहा है. उन्होंने बताया कि केवल 30% आपत्तियां और नाम जोड़ने के आवेदन ही वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं.
आधार की वैधता पर बहस

वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने आधार को पहचान के लिए अयोग्य बताते हुए कहा कि यह नागरिकता, उम्र या निवास का प्रमाण नहीं है. उन्होंने आधार को 12वें दस्तावेज़ के रूप में मान्यता देने के आदेश को वापस लेने की मांग की. इस पर जस्टिस बागची ने पूछा, “तो क्या पैन रिकॉर्ड आधार से अधिक प्रासंगिक है?” जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अंतरिम व्यवस्था के तहत आधार को शामिल किया गया है, लेकिन सभी पक्षों की बात सुनी जाएगी

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