राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने (शताब्दी वर्ष) पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है. भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब वो समय आ गया है.
उन्होंने कहा कि भारत दो बार की बड़ी गुलामियों को झेलकर आजाद हुआ है. 1857 के बाद भारतीय असंतोष ठीक से व्यक्त हो और वह नुकसान न करे, इसलिए कुछ व्यवस्था हो रही थी, लेकिन कुछ लोगों ने उसको अपने वश में कर लिया और उसे स्वतंत्रता की लड़ाई का हथियार बनाया.
उन्होंने कहा कि इंडियन नैशनल कांग्रेस नाम से वह धारा चली है. उसी में से अनेक राजनीतिक प्रवाह निकले. इतने सारे राजनीतिक दल निकले. उस राजनीतिक आंदोलन ने देश के लिए चरखा चलाना और जीना-मरना सिखाया. आजादी के बाद उस धारा को जैसा होना चाहिए था, वैसा होता तो आज का दृश्य कुछ अलग होता. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दोष देने की बात नहीं है, यह फैक्ट है.
उन्होंने कहा कि देश में एक तीसरी धारा थी, जिन्होंने समाज से अपने मूल पर चलने को आह्वान किया. स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद इस धारा के प्रमुख नाम थे. संघ पूरे भारत में सबको संगठित करने का काम कर रहा है. कुछ लोग संघ के धुर विरोधी थे, वो भी आज समर्थक बन गए हैं.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि जब हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी को छोड़ रहे हैं. हिंदू राष्ट्र का मतलब किसी का विरोध नहीं है. संघ किसी के विरोध में नहीं निकला है. संघ 100 साल से पूरे समाज का संगठित करने का काम कर रहा है. हिंदू राष्ट्र में सबके लिए न्याय समान रहा है.
भागवत ने कहा कि विविधता में भी एकता है. मान लीजिए कि कोई परीक्षा है और उसमें प्रश्न चार हैं. दो कठिन हैं और दो आसान हैं, तो पहले कौन सा चुनोगे. पहले आसान प्रश्न चुनना चाहिए. जो अपने आपको हिंदू कहते हैं, उनका जीवन अच्छा बनाओ, तो किसी कारण जो अपने आपको हिंदू होकर भी नहीं कहते हैं, वे भी कहेंगे. यह होने लगा है. जो भूल गए हैं, उनको भी याद आएगा. वह भी होगा. संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन जरूरी है.