सिब्बल के बाद प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने भी उठाए सवाल, जानिए क्या दिए तर्क
नई दिल्ली:
बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन (SIR) से जुड़े मसले पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हो रही है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधार को निर्णायक सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है. चुनाव आयोग का कहना सही है, इसे सत्यापित किया जाना चाहिए.
अदालत ने चुनाव आयोग की दलीलों को सही माना है. इससे पहले, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि SIR के दौरान संवैधानिक प्रावधानों को खुलेआम दरकिनार कर BLO और अन्य संबंधित मतदाता निबंधन से जुड़े अधिकारियों ने मनमानी की है. वहीं अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने भी सवाल उठाए.
सुप्रीम कोर्ट में योगेंद्र यादव ने भी अपनी दलीलें पेश की और कहा कि पूरी दुनिया में मतदाता सूची की पूर्णता को मापने का तरीका मतदान की उम्र के वयस्कों की कुल संख्या को देखना है. भारत ने शानदार प्रदर्शन किया है. भारत में मतदाताओं के लिए नामांकित वयस्कों का 99% हिस्सा है. केवल अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में नागरिक जनित गणना है. मतदाता के रूप में नामांकित करना आपकी जिम्मेदारी है. अमेरिका के पास सिर्फ 74
फीसदी और दक्षिण अफ्रीका में इससे भी कम हिस्सेदारी है.
वोटर लिस्ट में नामांकन बढ़ाने की जरूरत: योगेंद्र यादव
साथ ही उन्होंने कहा कि जब भी जिम्मेदारी एक राज्य से दूसरे मतदाता पर डाली जाएगी तो आप 25 प्रतिशत मतदाताओं को ऐसे मतदाताओं के रूपमें खो देंगे जिनमें से अधिकांश गरीब और हाशिए पर रहने वाले वर्गों से हैं. भारत में 99% लोगों के नाम हैं. बिहार में 97% है. हमें वोटर लिस्ट में नामांकन बढ़ाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि SIR की कवायद से एक झटके के साथ बिहार पहले ही 88% तक नीचे आ गया है, आगे भी इसे घटाया जाएगा. यह एसआईआर जब 2003 में और 1997-98 में किया गया था, क्या हमारे पास उस एसआईआर का कोई विश्लेषण है कि क्या हुआ ? यादव ने कहा कि वो कोईSIR नहीं था. यह केवल गहन पुनरीक्षण अभियान यानी आईआर था. दोनों की कोई तुलना नहीं है.
इतिहास में ऐसा कोई संशोधन नहीं है, जिसमें… : योगेंद्र यादव
उन्होंने कहा कि इस देश के इतिहास में कभी भी कोई ऐसा संशोधन नहीं हुआ है, जिसमें सभी लोगों को अपने फॉर्म जमा करने के लिए कहा गया हो.
उन्होंने कहा कि इस देश के इतिहास में कभी भी किसी ने किसी को दस्तावेज जमा करने के लिए नहीं कहा है. यदि यह 2003 में किया गया था तो मैं अपने सहयोगियों को इसे सही करने के लिए आमंत्रित करता हूं. चुनाव आयोग ने 2003 में निर्वाचन अधिकारियों को सूची का प्रिंटआउट दिया.
उन्हें घर-घर जाकर पुष्टि करने के लिए कहा गया कि व्यक्ति अभी भी वहां है. सारांश और गहन संशोधन के बीच का अंतर यह है कि सारांश घर-घर नहीं जाता है. इसमें जो कुछ जोड़ा गया है वह प्रपत्र और अनुमान की आवश्यकता है.
इससे पहले, योगेंद्र यादव ने कहा कि बड़े पैमाने पर बहिष्कार शुरू हो गया है. बहिष्कार 65 लाख से कहीं ज्यादा है. SIR के साथ इसमें और इजाफा होना तय है. यह SIR के कार्यान्वयन में विफलता नहीं, बल्कि एक योजना है. जहां भी SIR लागू किया जाएगा, परिणाम एक जैसे ही होंगे.
प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने सभी को गणना फॉर्म भरने के लिए नहीं कहा. साथ ही प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने कहा कि जो लोग 2003 में मतदाता थे, उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वो इसलिए कि करीब 5 करोड़ लोग जो 2003 की सूची में थे, वैसे भी उन्हें कोई दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं है.
4.96 करोड़ मतदाताओं पर क्या बोला चुनाव आयोग?
साथ ही चुनाव आयोग ने कहा कि 2003 की सूची में 4.96 करोड़ मतदाता हैं. उन्हें वैसे भी दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है, जो लोग जीवित हैं और जिनके नाम सूची में हैं. उन्हें कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है. यहां तक कि उनके बच्चों को भी कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में क्या जो 2003 में उस समय 20 वर्ष का था. अब उसका बच्चा 18 से अधिक है. क्या बच्चों को दस्तावेज दाखिल करना है? इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि नहीं, उन्हें दस्तावेज दाखिल नहीं करना है. उन्हें केवल यह दिखाना है कि उनका नाम परिजनों के साथ सूची में है.
उन्होंने फॉर्म 6 के साथ छेड़छाड़ की: प्रशांत भूषण
प्रशांत भूषण ने कहा कि हमें प्रारूप नामावली में बड़ी संख्या में ऐसे मृत व्यक्ति मिले हैं जो वास्तविकता में जीवित हैं.
हमने एक ही पते पर 300 ऐसे ही लोगों के नाम मिले हैं. अब आयोग कह रहा है कि मृत घोषित किए गए लोगों को फॉर्म 6 फिर से भरना होगा और नए मतदाता के रूप में आवेदन करना होगा.
उन्होंने कहा कि फॉर्म 6 कहता है कि आपको केवल नागरिकता की घोषणा देनी होगी. अब उन्होंने फॉर्म 6 के साथ छेड़छाड़ की है. उन लोगों से नागरिकता प्रमाण मांगा है जिन्हें अपने जीवित रहने की वजह से फिर से आवेदन करने की आवश्यकता है. उनके अपने दिशा-निर्देश कहते हैं कि यदि कोई आपत्ति करना चाहता है कि अमुक नागरिक नहीं है तो आपको विदेशी न्यायाधिकरण को सबूत और उनका नाम देना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह काफी हद तक विश्वास की कमी का मामला है. इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि विश्वास की कमी किसी राजनीतिक दल या मतदाता की नहीं है. यहां कोई मतदाता नहीं है.
अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से क्या कहा?
आधार और EPIC पर विचार करने का विरोध क्यों हो रहा है?
यह साफ है कि चुनाव आयोग इन पर विचार नहीं करना चाहता है, क्योंकि उनका कहना है कि ये नागरिकता निर्धारित करने के लिए अपर्याप्त हैं. अन्यथा, कोई कारण नहीं है.
जस्टिस सूर्यकांत: वे ऐसा नहीं कहते हैं, आधार ऐक्ट में ऐसा कहा गया है.
अभिषेक मनु सिंघवी: वे इसके विपरीत कहते हैं… पूरी प्रक्रिया अधिकार क्षेत्र से बाहर है. नागरिकता का निर्धारण एक ऐसी प्रक्रिया है जो चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है. वे चुनाव से दो महीने पहले यह नहीं कह सकते कि हम कर रहे हैं सर और हम हटा देंगे. नागरिकता के आधार पर लोगों को हटाने के लिए एक प्रक्रिया का पालन करना होता है. तर्क यह है कि 2003-2025 तक, जब तक चुनाव आयोग यह न पा ले कि ये लोग हैं. उनकी जांच के अनुसार, नागरिकता साबित करनी होगी, तब तक संभावित बहिष्कार लागू रहेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि ऐसा लगता है कि वे (चुनाव आयोग) सही कह रहे हैं कि आधार को निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. यह केवल किसी की पहचान का प्रमाण है. यह भी महत्वपूर्ण है.
इसके साथ ही जस्टिस सूर्यकांत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए सिब्बल को कहा कि आपको चुनाव आयोग से सहमत होना चाहिए, जब वे कहते हैं कि यह अभी केवल एक ड्राफ्ट रोल है. इसलिए कभी-कभी मृतकों को जीवित दिखाया जा सकता है, जीवित को मृत दिखाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए एक उपाय उपलब्ध है. पीड़ित आपत्ति दर्ज करा सकते हैं. अभी भी समय है, यह फाइनल सूची नहीं है.
वकील गोपाल शंकर नारायण ने आरोप लगाया कि बड़े पैमाने पर लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया गया है. 65 लाख लोग बाहर किए गए हैं. SC ने कहा कि ये सवाल आंकड़ों पर निर्भर करेगा. सिब्बल ने आरोप लगाया कि एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में 12 लोग ऐसे हैं जिन्हें मृत दिखाया गया है, लेकिन वे जीवित हैं. BLO ने कोई काम नहीं किया है.
जस्टिस सूर्यकांत – पहले हम जांच करेंगे कि क्या अपनाई गई प्रक्रिया सही है और फिर हम इसकी वैधता पर विचार करेंगे.
वकील गोपाल शंकरनारायणन: पिछली तारीख़ पर जस्टिस बागची ने कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर लोगों को बाहर रखा गया है, तो हम हस्तक्षेप करेंगे.अब चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ गए हैं. 65 लाख लोगों को बाहर रखा गया है.
सिब्बल: एक ज़िले में 12 लोगों को जीवित दिखाया गया है, जबकि वे मृत हैं, जबकि कुछ जगहों पर वास्तव में मृत लोगों को जीवित दिखाया गया है
वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी: इन मृतकों को जीवित और जीवित को मृत दिखाने के लिए, वे BLO से संपर्क कर सकते हैं, अदालत में अर्जी दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह ड्राफ्ट रोल है. हमने नोटिस जारी किया है कि जिनको कोई आपत्ति है अपनी आपत्तियां बताएं,
सुधार आवेदन जमा करें. ड्राफ्ट रोल में कुछ कमियां होना स्वाभाविक है.सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि कितने लोगों की पहचान मृतक के रूप में हुई है. आपके अधिकारियों ने जरूर कुछ काम किया होगा.चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ न कुछ त्रुटियां तो होंगी ही.
सिब्बल: वे 2003 के लोगों को दिए जा रहे किसी भी दस्तावेज़ से बाहर कर रहे हैं. ये 2025 के रोल हैं.
जस्टिस कांत: हम पूछ रहे हैं कि अगर आप प्रक्रिया को ही चुनौती दे रहे हैं तो आप कट-ऑफ तारीख पर सवाल उठा रहे हैं. फिर इस पर आते हैं कि क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार है.अगर यह मान लिया जाता है कि चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार नहीं है, तो मामला खत्म सिब्बल: यह सही है, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि अगर मैं 2003 के रोल में था और मैंने गणना फॉर्म दाखिल नहीं किया है, तो मुझे बाहर कर दिया जाएगा. मुझे इस पर भी आपत्ति है
जस्टिस बागची: नियम 12 कहता है कि अगर आप 2003 के रोल में नहीं हैं, तो आपको दस्तावेज़ देने होंगे
जस्टिस कांत: 62 में से 22 लाख स्थानांतरित हो गए. इसलिए इस विवाद में अंततः 35 लाख ही बचे हैं
जस्टिस बागची: सारांश पुनरीक्षण सूची में शामिल होने का मतलब यह नहीं कि आपको गहन पुनरीक्षण सूची में पूरी तरह शामिल कर लिया गया है.
गौरतलब है कि बिहार की विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर अदालत ने पहले चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया था
कि वह आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों के तौर पर स्वीकार करे, ताकि पुनरीक्षण प्रक्रिया अधिक व्यापक और निष्पक्ष हो सके. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने ECI से लगभग 65 लाख नामों की कटौती को लेकर विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई शुरू की
पहले हम प्रक्रिया की जाँच करेंगे: सुप्रीम कोर्ट
इसके बाद हम वैधता पर विचार करेंगे हमें कुछ तथ्यों की आवश्यकता होगी,
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा: हमें कुछ तथ्य और आंकड़े चाहिए होंगे.
एसआईआर क्या है?
एसआईआर यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision) चुनाव आयोग की वह विशेष प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट और शुद्ध किया जाता है। इसमें नए पात्र मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं, मृत या स्थानांतरित हो चुके लोगों के नाम हटाए जाते हैं और गलतियों को सुधारा जाता है.
आम तौर पर मतदाता सूची का वार्षिक पुनरीक्षण होता है, लेकिन एसआईआर एक गहन और लक्षित अभियान होता है, जो किसी विशेष राज्य या क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर चलाया जाता है. बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले यह प्रक्रिया शुरू की गई, ताकि मतदाता सूची को सही और अद्यतन किया जा सके.
इसमें बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर सत्यापन करते हैं, दस्तावेज मांगते हैं और मतदाता की पात्रता की जांच करते हैं. पात्रता साबित करने के लिए आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज मांगे जाते हैं.
एसआईआर का मकसद है चुनाव में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना. लेकिन बिहार में यह प्रक्रिया विवादों में आ गई है, क्योंकि ड्राफ्ट सूची में करीब 65 लाख नाम हटाए जाने का दावा किया गया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.